आस्था व विश्वास का प्रतीक है सवालडीह का काली मंदिर

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आस्था व विश्वास का प्रतीक है सवालडीह का काली मंदिर

कार्तिक अमावस्या में विशेष पूजा की तैयारी पूरी

तरुण कांति घोष, कतरास, धनबाद  : बाघमारा प्रखंड के कुमारजोरी पंचायत अंर्तगत सवालडीह स्थित उग्र चंडी काली मंदिर भक्तों के लिए आस्था व विश्वास का केंद्र है। रामपुर, कपुरिया, मालकेरा, भेलाटांड, सिजुआ आदि इलाके के भक्तों की इस मंदिर के प्रति गजब की आस्था है। लोगों की माने तो जो भी यहां निश्छल मन से मनौती मांगते हैं उनकी मुरादें मां काली अवश्य पूरा करती है। ऎसे तो प्रतिदिन मां के मंदिर में पूजन होती है, लेकिन कार्तिक अमावस्या को भव्य पूजनोत्सव के साथ मेला का भी आयोजन किया जाता है। यहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं। गुरुवार की रात होने वाली विशेष पूजा की तैयारी पूरी कर ली ग ई है। दशकों पुराने इस मंदिर की स्थापना कब हुई थी, इसका सही-सही पता लोगों को नहीं है। ग्रामीणों की माने तो मां काली के साधक घनश्याम सुपकार ने ताल बागड़ा की झोपड़ी बनाकर यहां पूजा प्रारंभ की थी। उस समय इलाका जंगल से भरा हुआ था। धीरे-धीरे भव्य मंदिर की स्थापना हुई।

== पाठा बलि की प्रथा: मंदिर में पाठा बलि की परंपरा है। टाटा सिजुआ 12 नंबर निवासी दिवंगत कालीपद महतो (काली मुंशी) के स्वजनों द्वारा सर्वप्रथम पाठा की बलि दी जाती है। इसे चक्षु दान का पाठा कहा जाता है। इसके उपरांत अन्य पाठा की बलि दी जाती है। लकड़का (मालकेरा) के भुनेश्वर कुंभकार मां की मूर्ति का निर्माण करते हैं। पहले उनके पूर्वज मूर्ति बनाया करते थे।

 

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