हनुमान जी ने दिखाया भक्ति का सच्चा मार्ग : हरिदास जी महाराज

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डीजेन्यूज लोयाबाद (धनबाद) : बजरंगबली हनुमान ने भगवान की भक्ति का मार्ग दिखाया। भक्ति कैसे करनी चाहिए यह बताया। हनुमानजी ने जीवन भर भगवान राम की भक्ति की लेकिन कभी कुछ नहीं मांगा। भगवान राम ने बिना मांगे उन्हें सब कुछ दिया। सच्ची भक्ति से ही भगवान की कृपा होती है। यह बातें शुक्रवार की रात एकडा राधा कृष्ण प्रेम मंदिर के वार्षिकोत्सव के मौके पर चल रहे नौ दिवसीय भागवत कथा में शुक्रवार की रात प्रवचन करते हुए कथा वाचक श्री हरिदास जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कही। “तेरी बिगड़ी बना देगी चरण रज राधा प्यारी की “भजन से भक्तों को श्रवण कराया। उन्होंने कहा कि चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन श्री बजरंगबली हनुमान जी का प्राकट्य हुआ।
हनुमना जी की जयंती नहीं होती। जयंती मनुष्यों की होती है। कहा कि सबसे अच्छी बात तो ये है की हनुमान जी का इस बार जो प्राकट्य दिवस पड़ रहा है वो शनिवार के दिन पड़ रहा है। शास्त्रों के अनुसार शनिवार मंगलवार हनुमान जी को समर्पित है। श्री सुरेन्द्र हरीदास जी महाराज ने कृष्ण जन्म पर नंद बाबा की खुशी का वृतांत सुनाते हुए कहा की जब प्रभु ने जन्म लिया तो वासुदेव जी कंस कारागार से उनको लेकर नन्द बाबा के यहां छोड़ आये और वहां जन्मी योगमाया को ले आये। नंद बाबा के घर में कन्हैया के जन्म की खबर सुन कर पूरा गोकुल झूम उठा। कहा की कंस ने पुतना राक्षसी को भगवान श्रीकृष्ण को विष स्तनपान करा कर मारने के लिए भेजा। राक्षसी सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वृंदावन में पहुंची। स्तनपान कराना चही तो भगवान कृष्ण ने आंखें बंद कर ली। भगवान स्तनपान करते करते पुतना का बध कर दिया। भगवान के सामने शत्रु बन कर उसका उद्दार कर दिया लेकिन जो मित्र के रूप में छल कपट के साथ आया उसका नाश कर दिया। भगवान राम के सामने रावण और भगवान कृष्ण के सामने कंस शत्रु बन कर आया तो उसका उद्दार कर दिया।
भगवान जो भी लीला करते हैं वह अपने भक्तों के कल्याण या उनकी इच्छापूर्ति के लिए करते हैं। भगवान स्वयं अपने भक्तों की चरणरज मुख के द्वारा हृदय में धारण करते हैं। पृथ्वी ने गाय का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को पुकारा तब श्रीकृष्ण पृथ्वी पर आये हैं। इसलिए वह मिट्टी में नहाते, खेलते और खाते हैं ताकि पृथ्वी का उद्धार कर सकें। अत: उसका कुछ अंश द्विजों (दांतों) को दान कर दिया। गोपबालकों ने जाकर यशोदामाता से शिकायत कर दी–’मां ! कन्हैया ने माटी खायी है।’ उन भोले-भाले ग्वालबालों को यह नहीं मालूम था कि पृथ्वी ने जब गाय का रूप धारणकर भगवान को पुकारा तब भगवान पृथ्वी के घर आये हैं। पृथ्वी माटी,मिट्टी के रूप में है अत: जिसके घर आये हैं उसकी वस्तु तो खानी ही पड़ेगी। इसलिए यदि श्रीकृष्ण ने माटी खाली तो क्या हुआ? ‘बालक माटी खायेगा तो रोगी हो जायेगा’ ऐसा सोचकर यशोदामाता हाथ में छड़ी लेकर दौड़ी आयीं। उन्होंने कान्हा का हाथ पकड़कर डांटते हुये कहा–‘क्यों रे नटखट ! तू अब बहुत ढीठ हो गया है। श्रीकृष्ण ने कहा–‘मैया ! मैंने माटी कहां खायी है।’ यशोदामैया ने कहा कि अकेले में खायी है। श्रीकृष्ण ने कहा कि अकेले में खायी है तो किसने देखा? यशोदामैया ने कहा–ग्वालों ने देखा। श्रीकृष्ण ने मैया से कहा–’तू इनको बड़ा सत्यवादी मानती है तो मेरा मुंह तुम्हारे सामने है। तुझे विश्वास न हो तो मेरा मुख देख ले।’‘अच्छा खोल मुख।’ माता के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया। भगवान के साथ ऐश्वर्यशक्ति सदा रहती है। कार्यक्रम को सफल बनाने में मोहन निषाद,नंद कुमार बीपी,उदय राम, अशोक सिंह, रोहित, धर्मेंद्र, आदि सराहनीय योगदान दे रहे हैं।

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