अटल इच्छाशक्ति से बुझ रहा दावानल, पुनर्जीवित होगा जंगल
दीपक मिश्रा : जंगल में आग लग जाती है। न केवल पेड़-पौधें झुलस जाते हैं बल्कि भारी संख्या में छोटे-छोटे जीव भी इस दावाग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं। विडंबना यह कि इस प्रचंड गर्मी में आग की लपटें दिन रात तबाही मचाती रहती है और विभाग चैन की बंशी बजाता रहता है। यह कोई नई बात नहीं है। दशकों से यही होता रहा है। लेकिन विभाग के इस उदासीन रवैये से पारसनाथ मकर संक्रांति मेला समिति इस कदर क्षुब्ध है कि इसने खुद ही जंगल की आग को बुझाने का बीड़ा उठा लिया है। समिति बीते कुछ वर्षों से जंगल को आग की भीषण तपन से बचा रही है। इस वर्ष भी समिति सदस्य जंगल में लगी आग को बुझाने में जुट गए है।
बताया जाता है कि विभाग द्वारा कोई कदम न उठाये जाने के बाद पारसनाथ मकर संक्रांति मेला समिति जंगल की आग बुझाने में पूरी तत्परता से जुट गई है। मंगलवार को समिति के अध्यक्ष नरेश कुमार महतो के नेतृत्व में छह सदस्यीय टीम ने पारसनाथ जंगल का भ्रमण किया। जहां-जहां भी आग लगी थी उसे कई घंटों की मशक्कत से बुझाया। बुधवार को भी जंगलों की टोह लेते नजर आये, जहां कहीं भी धुआं दिखता है तुरंत ही वहां जाकर आग बुझाने की कोशिश की जाती है। पारसनाथ पर्वत के दुर्गम रास्तों पर चलना कितना कठिन है इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। टीम में शामिल बालेश्वर महतो, विजय मुर्मू, संदीप कुमार महतो, प्रमोद कुमार महतो, विनोद सोरेन आदि अहले सुबह ही जंगल चले गए तथा इस का बात का जायजा लिया कि कहीं आग तो नहीं लगी है। इस बाबत नरेश महतो ने बताया कि प्रत्येक वर्ष इस माह में जंगलों में आग लग जाती है। लोग महुआ चुनने के लोभ में आग लगा देते हैं। इस तरह आग पूरे जंगल में फैल जाती हैं।
“जंगल में आग लगने का मुख्य कारण महुआ चुनने को ले ग्रामीणों द्वारा लगायी जाने वाली आग है। ऐसे में सबसे ज्यादा आवश्यक है ग्रामीणों को जागरूक करना। ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है साथ ही जिस क्षेत्र में आग लग रही है। आग बुझाने में वहां के ग्रामीणों से भी मदद ली जाती है। खुशी की बात यह है कि ग्रामीण बढ़चढ़कर मदद करने लगे हैं।”
– मनोज अग्रवाल, संयोजक, पारसनाथ मकर संक्रांति मेला समिति