मौत को सामने देखकर भी नहीं डगमगाए थे कामरेड महेंद्र सिंह

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मौत को सामने देखकर भी नहीं डगमगाए थे कामरेड महेंद्र सिंह

अंतिम सांस तक गरीबों के अधिकार के लिए लड़ने वाले जननेता की कहानी जानें

16 जनवरी शहादत दिवस पर विशेष

सीपीआई एमएल के पूर्व विधायक महेंद्र सिंह के शहादत दिवस पर मंगलवार को बगोदर में हजारों लोग देंगे श्रद्धांजलि

सुधीर सिन्हा, गिरिडीह : गिरिडीह जिले के बगोदर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक महेंद्र सिंह का मंगलवार 16 दिसंबर को शहादत दिवस है। शहीद महेंद्र सिंह का पैतृक गांव खंभरा बगोदर प्रखंड मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है। अब इस गांव की गिनती आदर्श गांव के रूप में होती है। आदर्श गांव होने का वाजिब कारण है कि पिछले चार दशक से अधिक समय से खंभरा गांव का एक भी मामला बगोदर थाना नहीं पहुंचा है। आज के दौर में जहां सास-बहू के झगड़े भी थाने तक पहुंच जाते हैं, वहीं इस गांव के सभी मामले ग्रामसभा के माध्यम से सुलझाए जाते हैं। महेंद्र सिंह या यूं कहें कि शहीद महेंद्र सिंह का नाम जेहन में उभरते ही एक ऐसी छवि सामने आ जाती है, जिसे हम सच्चे मायने में जनसंघर्षों का योद्धा कह सकते हैं। जनवादी सवाल देश के किसी भी हिस्से की जनता का हो, उसे महेंद्र सिंह अपनी बुलंद आवाज जरूर देते थे। सड़क से लेकर सदन तक जनता की वाजिब सवालों को कड़कती आवाज में उठाने की नायाब कला महेंद्र सिंह जानते थे। दरअसल महेंद्र सिंह क्रांतिकारी विरासत को पूरी संजीदगी से 80 और 90 के दशक में आगे बढ़ाते रहे। महेंद्र सिंह ने सच और मानवीय मूल्यों को जीवंत बनाने के लिए ही इंकलाब का रास्ता चुना था। मौत का एहसास उन्हें सपने में भी नहीं सताता था। उनका कहना था जिंदगी का एक-एक लम्हा इंकलाब की रफ्तार तेज करने के लिए है। जनतंत्र में उनकी गहरी आस्था थी और एक आदर्श कम्युनिस्ट नैतिकता वाला जीवन व्यवहार उन्हें खास बनाता गया। एक जननायक की तरह गम्भीर विषयों की भी सरल व्याख्या करने में वे माहिर थे। मार्क्सवाद के सूत्रों को ठेठ देसी उद्धरणों के जरिये लोगों तक पहुचाने की कला वे बखूबी जानते थे। महेंद्र सिंह ने सामंतवादी मिजाज, चरित्र और धारा का सजग प्रतिरोध किया। उन्होंने प्रतिवाद के अनेक रूप गढ़े और तत्कालीन समस्याओं से जूझने का तरीका भी ढूंढा। खुले तौर पर महेंद्र सिंह जनसभाओं में कहा करते कि वे आपसे(जनता से) कोई वायदा नहीं कर सकते। मैं आपके दुःख सुख का साथी हूं, आपकी लड़ाई का साझीदार हूँ। मैं आपको धोखा नहीं दे सकता, आपकी लड़ाई से भाग नहीं सकता। मैं जेल जा सकता हूं, मारा जा सकता हूं। जीवन पर्यंत उन्होंन ऐसा किया भी। बिहार और बाद में गठित झारखंड मे पुलिस दमन का सवाल हो या जनता के दूसरे मुद्दे उन्होंने हरएक जनांदोलन की रहनुमाई की और एक साहसी योद्धा की तरह जनसवालों पर आवाज बुलंद करते रहे। जब एक छोटी आवाज बुलंद होती है और लोकतंत्र को व्यापक बनाने के लिए तर्क देती है, तो वर्चस्ववादी ताकतें खतरा महसूस करने लगती है। यह समझना जरूरी है कि महेंद्र सिंह की जन अदालतों से किसे खतरा था। कौन उनकी सक्रियता और बुलंद आवाज से परेशान होता था। जनविरोधी ताकतों को खत्म कर जनतंत्र के प्रसार के एजेंडे का दुश्मन कौन सी ताकतें थी। क्या वही महेंद्र सिंह की हत्या के कारक और साजिशकर्ता नहीं हैं? इन सवालों का जवाब महेंद्र सिंह के बताए क्रांतिकारी विचारधारा है, जिसके केंद्र में जनतंत्र, जन सक्रियता और जनमुद्दों की राजनीति है, तभी जिंदगी की कीमत इंकलाब के रुप में चुकाई जा सकती है।

 

मौत को सामने देखकर भी महेंद्र सिंह नहीं डगमगाए

 

सीपीआई एमएल के पूर्व विधायक महेंद्र सिंह महज एक व्यक्ति नहीं थे बल्कि एक विचारधारा थे। वे अंतिम सांस तक गरीब मजदूरों के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ते रहें। पुलिसिया दमन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाते रहे वो जो कहते थे उसे निश्चित रूप से पूरा करते थे। गरीबों के प्रति वह सदैव समर्पित रहे और निर्भीक होकर जनाधिकार के लिए शासन व्यवस्था के खिलाफ जनता की आवाज को बुलंद करते रहे थे। किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर चुप रहने की उनकी आदत नहीं थी। लिहाजा पुलिस दमन, सामंती जुल्म और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ उन्होंने कई आंदोलन किए हैं। आंदोलन का दौर लंबा चला, लेकिन अंततः उन्हें जीत मिली। वे निरंतर व्यवस्था को उजागर करते रहे। इसके कारण वे कई लोगों की आंखों की किरकिरी भी बने हुए थे। एक जनप्रतिनिधि के रूप में वह हमेशा जनता से जुड़े रहे कारण वह आज ही लोगों के जहन में रचे बसे हुए हैं।

 

जब जेल में समय पर खाना नहीं मिलने पर चलाया था थाली-पीटो आंदोलन

 

महेंद्र सिंह सही मायने में लोगों के लिए एक मसीहा से महेंद्र सिंह के प्रति लोगों का विश्वास और सब के लिए हर दम हर पल खड़ा होना ही लोगों को उनका कायल बना देता है। महेंद्र सिंह चाहे जेल के अंदर हो या जेल के बाहर उनके आंदोलनों की तूती बोलती थी। एक मामले में वो रांची जेल में बंद थे, वहां कैदियों को खाना सही समय पर नहीं मिलता था। इस पर उन्होंने कैदियों के साथ थाली पीटो आंदोलन की शुरुआत की। उनके आंदोलन से भोजन की व्यवस्था दुरुस्त हो पाई। इस आंदोलन के बाद उन्हें दूसरी जेल भेज दिया गया था। फिर भी महेंद्र सिंह ने जेल में रहकर आंदोलन किया।

 

चुनावी सभा के दौरान गोली मारकर की गई थी नेता की हत्‍या

 

16 जनवरी 2005 को गिरिडीह जिले के सरिया थाना अंतर्गत दुर्गी धवैया में चुनावी सभा के दौरान भाकपा माले विधायक महेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। माले के विरोध के बाद सरकार ने इस हत्याकांड की सीबीआइ जांच की सिफारिश की थी। इसके बाद सीबीआइ लखनऊ क्राइम ब्रांच ने 27 फरवरी 2005 को प्राथमिकी दर्ज कर इसकी जांच शुरू की थी। सीबीआइ धनबाद की विशेष अदालत में दो चार्जशीट दे चुकी है। धनबाद की विशेष अदालत में सीबीआइ ने पहली चार्जशीट 22 दिसंबर 2009 एवं दूसरी चार्जशीट 7 जनवरी 2010 को दाखिल किया था। सीबीआइ ने महेंद्र सिंह की हत्या को नक्सली कार्रवाई माना।

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