झारखंड समेत पांच राज्यों के आदिवासी गांवों में संविधान लागू कराए केंद्र सरकार : सालखन
डीजे न्यूज, गिरिडीह : आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को पत्र लिखकर आदिवासी गांव समाज में जनतंत्र और संविधान-कानून, मानव अधिकार लागू करने की मांग की है।
पत्र में कहा है कि
भारत देश आजाद हो चुका है, संविधान भी लागू है परंतु अधिकांश आदिवासी गांव- समाज में जनतंत्र, संविधान कानून, मानव अधिकार आदि लागू नहीं है। इसको लागू करने का विशेष दायित्व केंद्र और राज्य सरकारों की है। लगता है पुलिस- प्रशासन के अधिकांश उच्च पदाधिकारी (आईएएस / आईपीएस आदि) आदिवासी स्वशासन (सेल्फ रूल) व्यवस्था के नाम पर चालू स्वशासन व्यवस्था में संविधान कानून, मानवाधिकार आदि के घोर उल्लंघन के मामलों से अनभिज्ञ हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति झारखंड,बंगाल, बिहार उड़ीसा, असम आदि प्रांतों में अलार्मिंग है। खासकर संताल- आदिवासी गांव समाज में। जहां माझी- परगना व्यवस्था के नाम से प्राचीन, परंपरागत- वंशानुगत स्वशासन व्यवस्था चालू है। जो अब स्वशासन की जगह स्वशोषण का रूप ले चुका है। जहां डंडोम (जुर्माना), बारोन (सामाजिक बहिष्कार), डान पनते (डायन प्रताड़ना- हत्या), नशापान, अंधविश्वास, वोट की खरीद बिक्री, आदिवासी महिला विरोधी मानसिकता, वंशानुगत स्वशासन प्रमुखों की नियुक्ति आदि चालू है। जो अंततः आदिवासी गांव- समाज में अन्याय, अत्याचार, शोषण को खत्म करने की जगह बढ़ाने का काम कर रहा है। पुलिस- प्रशासन आदिवासी समाज का आंतरिक मामला बोल कर अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ लेता है।
आदिवासी सेंगेल अभियान उपरोक्त 5 प्रदेशों में लंबे समय से आदिवासी सशक्तिकरण (सेंगेल) के कार्य में प्रयासरत है। कटु अनुभवों के परिपेक्ष में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को 16 मार्च को इसकी जांच और सुधारात्मक त्वरित कार्रवाई के लिए ज्ञापन पत्र प्रेषित किया है। तत्पश्चात प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के अलावा 5 प्रदेशों के मुख्यमंत्री और राज्यपालों के साथ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय जनजातीय आयोग को भी त्वरित जांच और सुधारात्मक कार्रवाई के लिए 8 अप्रैल को ज्ञापन दिया है। राष्ट्रहित में आग्रह है कम से कम उपरोक्त 5 प्रदेशों के मुख्य सचिवों के मार्फत सभी आदिवासी बहुल जिलों के डीएम/ एसपी आदि को संविधान, कानून, मानवाधिकार और जनतंत्र को आदिवासी गांव- समाज में भी लागू करने के लिए प्रेरित करें ताकि कार्यपालिका के सहयोग से आदिवासी गांव- समाज में त्वरित सुधार हो सके।