… और उसने बदल दी शिबू के जीवन की दिशा

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दीपक मिश्रा : डीएसपी पद से सेवानिवृत्त बी किचिंगिया का निधन बीते 26 मार्च को रांची में हो गया। खबर सुनते ही शिबू के पुत्र व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची स्थित उनके घर पहुंचे तथा उन्हें श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री का हाव-भाव स्पष्ट संकेत दे रहे थे कि जिस व्यक्ति ने इस दुनिया को अलविद कह दिया है उसका उनके जीवन में एक अलग महत्व है। हमेशा के लिए शांत हो चुके इसी व्यक्ति ने कभी उनके पिता के जीवन में गति ला दी थी।
धनबाद के टुंडी में भी शिबू को करीब से जानने वालों की स्मृतियों में अभी भी बी किचिंगिया की स्पष्ट तस्वीर है जिसने उस समय के शिबू सोरेन के जीवन की दिशा ही बदल थी। उन्हीें की प्रेरणा से वे मुख्यधारा में जुड़ गए थे। बताया जाता है कि 70 के दशक में पारसनाथ के जंगलों में भूमिगत रहकर शिबू सोरेन आंदोलन कर रहे थे। आंदोलनरत शिबू शासन-प्रशासन के लिए चिंता का सबब बन चुके थे और ऐसे में उन्हें येन-केन-प्रकारेण मुख्यधारा में लौटाने का जिम्मा ईमानदारी एवं सादगी के लिए प्रसिद्ध धनबाद के तत्कालीन डीसी केबी सक्सेना को दे दिया गया था। इस जिम्मेवारी को निभाने में केबी सक्सेना का महत्वपूर्ण साथ टुंडी के तत्कालीन थाना प्रभारी बी किचिंगिया ने दिया। शिबू को मुख्यधारा में लाने के अभियान को पूरी गंभीरता से लिया तथा अपरोक्ष रूप से संवैधानिक दायरे के अंदर शिबू के आंदोलन में साथ दिया। शिबू पूरी तरह से प्रभावित हो चुके थे। भूमिगत जीवन छोड़कर मुख्यधारा की राजनीति में शिबू को लाने का सबसे अधिक श्रेय किचिंगिया को ही जाता है।
तत्कालीन थाना प्रभारी किचिंगिया के साथ शिबू सोरेन का मित्रवत संबंध था। शिबू तब टुंडी के पलमा में भूमिगत रहकर आंदोलन कर रहे थे। उनकी एक आवाज पर हजारों आदिवासी डुगडुगी बजाकर जुट जाते थे। बेदाग छवि के डीसी केबी सक्सेना शिबू से मिलने पलमा पहाड़ पहुंच गए थे। उन्हें किचिंगिया लेकर गए थे। किचिंगिया से कई चक्र की बात के बाद शिबू सरेंडर कर मुख्यधारा की राजनीति में आने को तैयार हो गए थे। इसके बाद शिबू ने टुंडी थाना जाकर सरेंडर कर दिया था। प्रशासन को डर था कि कहीं यह बात न फैल जाए कि शिबू को गिरफ्तार किया गया है। ऐसी स्थिति में आदिवासी समाज भड़क सकता था। इस कारण किचिंगिया ने शिबू से लिखवाकर ले लिया था कि वह सरेंडर कर रहे हैं। साथ ही टेप रिकार्डर में शिबू की अपील टेप कराया था। शिबू ने अपील की थी कि कोई भी कानून को अपने हाथ में न लें।
शिबू की राजनीतिक जीवन यात्रा को करीब से जानने वालों के मुताबिक बराकर नदी किनारे स्थित ऐतिहासिक नंदा महादेव मंदिर में शिबू के नेतृत्व में हजारों आदिवासियों ने पंडा समाज के विरोध के बावजूद पूजा की थी। इस सामाजिक बदलाव की लड़ाई में भी किचिंगिया ने पूरा प्रशासनिक सहयोग शिबू को दिया था।

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