‘देवभूमिझारखंडन्यूज’ से निष्पक्ष व सच्ची पत्रकारिता की उम्मीद : आचार्य

0

डीजेन्यूज डेस्क: आचार्य सुयश सूरी जी महाराज जैन समाज के प्रसिद्ध संत है। झारखंड में इनकी पहचान सराक जैन के उत्थान के लिए कार्य करने वाले के रूप में है। मधुबन में अखिल भारतीय सराक जैन संगठन के साथ-साथ बोकारो के पर्वतपुर व इंदौर के में भी धार्मिक संस्थाओं की स्थापना की है। बुधवार को आचार्य श्री मधुबन पहुंचे थे। इसी क्रम में जब उन्हें देवभूमिझारखंडन्यूज वेबसाइट के अस्तित्व में आने की जानकारी मिली तो उन्होंने पूरी टीम को बधाई दिया। साथ ही साथ पाठकों की उम्मीद की कसौटी पर खतरा उतरने का भी आर्शीवाद दिया। आचार्य सुयश सूरी जी महाराज वर्ष 1991 से ही सराक जैन के उत्कर्ष के लिए कार्य कर रहे हैं। इन्हें जैन धर्म के साथ-साथ संस्कृत, ज्योतिष में गहरी जानकारी है। जैन दर्शन में शोध भी किया है। शुक्रवार को आचार्य श्री इंदौर के लिए रवाना हुए।
आज के दौर में निष्पक्ष व सच्ची पत्रकारिता आवश्यक
अपना विचार रखते हुए आचार्य श्री ने कहा कि आज के दौर में समाज में हर स्तर में सुधार लाने के लिए निष्पक्ष पत्रकारिता पर बल देना होगा। ऐसा नहीं है कि निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं हो रही है पर इसमें और भी सुधार लाने की आवश्यकता है।
सराक क्षेत्रों के भ्रमण के बाद पहुंचे थे मधुबन
आचार्य श्री बीते एक माह में झारखंड के बोकारो, जामताड़ जिला के विभिन्न गांवों तथा पश्चिम बंगाल के पुरूलिया, आसनसोल आदि जगहों में भ्रमण किया। इस दौरान उनके सान्निध्य में कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। बोकरो के पर्वतपुर में उपधन तप का आयोजन किया गया जिसमें भारी संख्या श्रद्धालुओं ने भाग लिया था।
सफल जीवन के लिए अंतः स्थिति बदलें

महाराज श्री अपने प्रवचनों में खास कर सफल जीवन जीने की कला बताते हैं। अपने पाठकों के लिए कुछ बोलने के निवदेन पर डनहोंने कहा कि सफल जीवन के लिए अंतः स्थिति बदलने की आवश्यकता है। बाह्य जगत की जानकारियों को अधिक मात्रा में प्राप्त करना उचित भी है और आवश्यक भी पर सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपने निज के बारे में अधिकाधिक जानें तथा अपनी समस्याओं को समझते हुए अपना हित साधन करने का समुचित प्रयत्न करें। जीवन की उन्नति और अवनति में बाह्य परिस्थितियों का ज्यादा प्रभाव नहीं है प्रमुख भूमिका तो आंतरिक स्थिति की होती है। आप यदि मलीन, निकृष्ट और अस्त व्यस्त हैं तो उसका प्रभाव कैसा होगा आप समझ सकते हैं। यह दुनिया दर्पण की तरह है उसमें अपना ही प्रतिबिंब दिखता है। जो अंदर से जैसा होता है उसके मित्र एवं सहयोगी भी उसी स्तर के बढ़ते जाते हैं।

इस खबर को शेयर करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *