कुर्मी को एसटी में शामिल करने से वृहत झारखंड में आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा : सालखन
डीजे न्यूज, जमशेदपुर :
आज झारखंड और बृहद झारखंड क्षेत्र में आदिवासी समाज के अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी का भयंकर खतरा चौतरफा मंडरा रहा है। कुर्मी महतो के आदिवासी बनने का खतरा, डोमिसाइल के नाम पर झुनझुना थमाने और रोजगार नहीं पाने का खतरा, सरना धर्म कोड की मान्यता लंबित होने का खतरा, झारखंड में संताली राजभाषा नहीं बनने का खतरा, सीएनटी एसपीटी कानून रहने के बावजूद आदिवासी जमीन की लूट का खतरा, आदिवासी स्वशासन व्यवस्था या ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में जनतंत्र और संविधान के नहीं लागू होने का खतरा, विस्थापन- पलायन नहीं रुकने का खतरा के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा सर्वाधिक दोषी है। कारण, झामुमो गुरुजी शिबू सोरेन के नेतृत्व में अब तक चार दशकों से आदिवासियों का सर्वाधिक वोट लेकर आदिवासियों को सर्वाधिक ठगने का काम किया है। झारखंड बनने के बाद भी केवल वोट और नोट की राजनीति कर रहा है। आदिवासी समाज के सुरक्षा और समृद्धि की राजनीति नहीं करता है। यह बातें आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन ने कही हैं। वह गुरुवार को यहां पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि कुर्मी जाति को आदिवासी या एसटी बनाने का प्रत्यक्ष समर्थन झामुमो ने किया है जिसका असर उड़ीसा और बंगाल में भी पड़ा है। कुर्मी को वोट की लालच में एसटी बनाने की क्रियाकलाप में बीजू जनता दल और टीएमसी भी दोषी है। कुर्मी समुदाय का दावा कि हम 1950 के आगे तक एसटी में शामिल थे, दमदार नहीं लगता है। कारण, 1931 की जनगणना में भी अंग्रेजों द्वारा जारी सेंसस ऑफ इंडिया- 1931 वॉल्यूम 7, बिहार एंड उड़ीसा, पार्ट वन रिपोर्ट द्वारा डब्लूजी लेसी में इंपीरियल टेबल 18 और 17 में इनका नाम नहीं है। उसी प्रकार बंगाल डिस्टिक गैजेटियर – संताल परगना द्वारा एस एसओ मॉलली- 1910 के प्रकाशित सेंसस ऑफ 1901 में भी इनका जिक्र हिंदू के साथ कॉलम ‘बी’ में कृषक जाति के रूप में दर्ज है। जबकि aborigines के रूप में संताल परगना में केवल संताल, सौरिया पहाड़िया और माल पहाड़िया का नाम दर्ज है। कुरमी का पुराना दावा कि हम 1913 में एसटी थे भी संदेहास्पद है। कारण, 2 मई 1913 के आर्डर नंबर 550 का संबंध इंडियन सकसेशन एक्ट 1865 से है, ना कि यह शेड्यूल ट्राइब (एसटी) चिन्हित करने से संबंधित है।
अतएव वोट की लालच में झामुमो 8 फरवरी 2018 को हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो के सभी सांसद और विधायकों के हस्ताक्षर सहित कुर्मी को एसटी बनाने का ज्ञापन तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को देना आदिवासियों के लिए फांसी का फंदा बनाने जैसा है।
आदिवासी सेंगेल अभियान कुर्मी के खिलाफ सीधे-सीधे विरोध करना संविधान और जनतंत्र के खिलाफ मानता है। अतएव सेंगेल झामुमो,बीजेडी और टीएमसी का विरोध करती है। कुर्मी जाति समूह को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाने का सलाह देती है ताकि उनके पास कोई ठोस तथ्य, प्रमाण और एविडेंस हो तो उसकी पुष्टि हो सकती है।
फिलहाल आदिवासी सेंगेल अभियान झारखंड और बृहद झारखंड क्षेत्र में आदिवासी हितों की रक्षार्थ झामुमो, बीजेडी और टीएमसी के खिलाफ सामाजिक- राजनीतिक संघर्ष को मजबूर है। इसके लिए सेंगेल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा है। उनके सहयोग से आगे के संघर्ष को सफल बनाने के लिए विचाररत है। भारत सरकार यदि सरना धर्म कोड की मान्यता पर सकारात्मक संकेत देने को तैयार है तो सेंगेल खुलकर भाजपा को साथ देने के लिए तैयार है। अन्यथा सेंगेल, सरना धर्म कोड मान्यता के लिए 30 नवंबर को 5 प्रदेशों में रेलरोड चक्का जाम को मजबूर है। 30 सितंबर का सरना धर्म कोड कोलकाता रैली ऐतिहासिक सफल था। जिसमे 5 प्रदेशों से लगभग एक लाख सेंगेल समर्थक आदिवासी के साथ साथ राँची से सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा, शिक्षाविद डॉ करमा उराओं, विद्यासागर केरकेट्टा के शामिल होने से आदिवासी एकता और आंदोलन बहुत मजबूत हुआ है।