जानिए ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में सुधार के लिए दिल्ली में सालखन मुर्मू ने कैसे चलाया अभियान
डीजे न्यूज, रांची : ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में सुधार के लिए आदिवासी सेंगेल अभियान ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के नेतृत्व में 24 अगस्त से दो सतिंबर तक अभियान चलाया। इस अभियान की पूरी रिपोर्ट को आप सालखन मुर्मू के हवाले से यहां जान सकते हैं। दिल्ली से लौटकर सालखन मुर्मू ने पूरी रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार
आदिवासी सशक्तिकरण के रास्ते में आंतरिक कमजोरियों और खासकर प्रथा, परंपरा और रूढ़िवाद आदि से प्रेरित और ग्रसित नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, महिला विरोधी मानसिकता, ईर्ष्या द्वेष, राजनीतिक कुपोषण, परिवार केंद्रित सोच और व्यवहार, माइक्रो सेंट्रिक नजरिया और लॉजिकल की जगह मैजिकल माइंड सेट में सुधार की कमियों से आदिवासी समाज आज अपने झारखंड प्रदेश में भी लाचार, कमजोर और बेगाना बना हुआ है। देश में प्रथम एक बड़ी आदिवासी भाषा- संताली भाषा के आठवीं अनुसूची में शामिल होने के बावजूद यह आदिवासी समाज के लिए बेकार साबित हो रही है। संवैधानिक और कानूनी ताकतें, जैसे सीएनटी एसपीटी कानून, पेसा कानून, वन अधिकार कानून, समता फैसला, सुप्रीम कोर्ट का फैसला-जिसकी जमीन उसका खनिज, पांचवी अनुसूची, ट्रैवल एडवाइजरी काउंसिल, खाद्य सुरक्षा कानून, एससी / एसटी कानून आदि की नासमझी और वृहद एकता की कमी से सब कुछ बेकार साबित हो रहे हैं। आदिवासी समाज में टैलेंटेड लोग हैं, मगर एक साथ बैठने और समाज हित में कुछ नया और अच्छा करने का साहस, इच्छा और छटपटाहट नहीं है। सामूहिकता की जरूरत यहां है, किंतु अपने- अपने ईगो आदि के कारण से यह कलेक्टिव विजडम यहां गायब है।
आदिवासी समाज को न्याय और अधिकार प्राप्त करने के लिए तीन ही रास्ते दिखाई पड़ते हैं। पहला जनप्रतिनिधियों (एमएलए एमपी पंचायत) का सच्चा, ईमानदार प्रयास। दूसरा न्यायालय और तीसरा समझदारी पर आधारित व्यापक जन आंदोलन। पहले दो ताकतों की अपेक्षा तीसरी ताकत के लिए आदिवासी समाज में आज भी बड़ी आबादी उपलब्ध है। झारखंड में लगभग 81 में से 50 विधानसभा क्षेत्रों में इसका निर्णायक प्रभाव है। परंतु आदिवासी समाज वोट और राजनीति को समाधान है, जीवन और भविष्य है, की समझदारी शिक्षित- अशिक्षित सभी आदिवासियों में बहुत कम है। दूसरी सबसे बड़ी समस्या “आदिवासी स्वशासन व्यवस्था” या ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम ( TSRS ) की है। इस व्यवस्था के अगुआ वंशवादी हैं। संविधान- कानून, मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन करते हैं। अन्ततः अधिकांश अनपढ़, पियक्कड़, संविधान कानून से अनभिज्ञ लोग इसके सामाजिक इंजिन या अगुआ हर आदिवासी गांव में बन जाते हैं। जो उन पारंपरिक बुराइयों के वाहक तो हैं ही, गांव समाज को आज की चुनौतियों के लिए तैयार करने हेतु बिल्कुल अयोग्य हैं। झोलाछाप डॉक्टर कैंसर और कोरोना जैसी महामारियों का इलाज कैसे कर सकता है ? अतः प्रत्येक आदिवासी गांव में अवस्थित आदिवासी जन समुदाय को खतरों की समझ और समाधान की दवा के साथ एकजुट करने के लिए गांव समाज में सुधार करना जरूरी है। टीएसआरएस में गुणात्मक जनतांत्रिकरण की भावना और व्यवहार को समाहित करते हुए संविधान, कानून आदि की समझ को परिपक्व कर चुनौतियों का मुकाबला निश्चित संभव है। टीएसआरएस के सुधार और पढ़े लिखे समझदार और गांव समाज में अवस्थित अच्छे लोगों की भागीदारी से आदिवासी समाज गुलामी से आजादी की ओर, हार से जीत की ओर निश्चित बढ़ सकता है।
आदिवासी गांव समाज में सुधार, टीएसआरएस में सुधार और आदिवासी समाज की आंतरिक कमजोरियों को दूर करने के परिपेक्ष में हमारे 10 दिनी (24 अगस्त से 2 सितंबर 2022) दिल्ली दौरा को ऐतिहासिक, ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक मानता हूं। दिल्ली दौरा के दौरान राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, झारखंड के पूर्व राज्यपाल प्रभात कुमार, रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन, साहित्य अकादमी के सचिव, राष्ट्रीय चिंतक के एन गोविंदाचार्य, जेएनयू के वाइस चांसलर प्रोफेसर शांतिश्री डी पंडित, राष्ट्रीय एसटी कमीशन के चेयरमैन एवं सदस्य, राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन, जेएनयू के प्रोफेसर डॉ संजय पांडे, आईएएस अकैडमी मसूरी में 8 वर्षों तक डायरेक्टर रहे एन सी सक्सेना, डॉ संजय पासवान, सीनियर जर्नलिस्ट- संडे गार्जियन आदि से हमारी मुलाकात और बातचीत सपनों को सच बनाने जैसा था। हम इसको जनहित में साझा करना चाहते हैं।
मैें अपनी पत्नी सुमित्रा मुर्मू के साथ 24 अगस्त को दिल्ली पहुंचा। जेएनयू में पीएचडी के अंतिम पड़ाव पर शिक्षारत बेटी ज्योति मुर्मू ने हमें रिसीव किया। हम सीधे हमारी बाई आंख का कैटरेक्ट ऑपरेशन के लिए अस्पताल गए। सफल ऑपरेशन हुआ। 25 अगस्त की सुबह जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों के प्रोफेसर डॉ संजय पांडे से मिले। उनको सेंगेल पुस्तक और संताली भाषा विजय का टर्निंग प्वाइंट पुस्तक भेंट किया। उनको टीएसआरएस में जारी बाधाओं तथा संभावित समाधान पर चर्चा किया। उनसे सहयोग मांगा। उन्होंने प्रोफेसर विवेक कुमार एवं अन्य से बात शुरू करने की बात कही।
तत्पश्चात पुराने मित्र डॉ अमित मुखर्जी, जमशेदपुर की प्रेरणा से “सेंटर फॉर गवर्नेंस” दिल्ली की ओर कूच किया। जो झारखंड के प्रथम राज्यपाल एवं भारत के कैबिनेट सचिव रह चुके प्रभात कुमार जी अध्यक्षता में चालू है। शांति नारायण, रेलवे बोर्ड में चेयरमैन के समकक्ष पदाधिकारी थे, सेंटर के सचिव हैं। दोनों से टीएसआरएस की कमजोरियों और सुधार संभावनाओं पर विस्तृत बातचीत हुई। दोनों ने पूरे ग्रुप के साथ सहयोग करने का आश्वासन दिया। सेंटर फॉर गवर्नेंस, दिल्ली के सामने 5 प्रदेशों में अवस्थित ट्राइबल गवर्नेंस को सुधारने की नई चुनौती है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से 26 अगस्त को मुलाकात हुई। उन्हें ज्ञापन पत्र के साथ संताल हूल के महानायक सिदो मुर्मू का फोटो फ्रेम भेंट किया। “सेंगेल पुस्तक” और “संताली भाषा विजय का टर्निंग प्वाइंट” पुस्तक भी प्रदान किया। उनसे आग्रह किया कि टीएसआरएस के सुधार के लिए अविलंब एक कमिटी का गठन किया जाए। संविधान में व्यवस्थित पांचवी अनुसूची और आदिवासी हितों के लिए बने अन्य कानूनों को प्रभावी रूप से कार्यकारी बनाने के लिए एक कमीशन का गठन किया जाए। संताल हूल के महानायक सिदो मुर्मू को बिरसा मुंडा की तरह स्थापित कर भारत के पार्लियामेंट में स्थान दिया जाए। “सिदो मुर्मू ट्राईबल सेंटर फॉर रिसर्च एंड स्टडी” का गठन किया जाए। भारत के आदिवासियों को संविधान और कानूनों के मार्फत न्याय और अधिकार दिया जाए। जिसके तहत झारखंड में संताली राजभाषा, सरना धर्म कोड की मान्यता, असम अंडमान के झारखंडी आदिवासियों को एसटी का दर्जा, झारखंड प्रदेश भारत और दुनिया के आदिवासियों का गढ़ है, अतएव इसको सुरक्षित और समृद्ध किया जाए। टीएसआरडीएस में अविलंब सुधार लाया जाए ताकि आदिवासी गांव समाज में भी जनतंत्र और संविधान लागू हो सके। उन्होंने सहयोग का आश्वासन दिया।
29 अगस्त को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात हुई। उन्हें भी सेंगेल पुस्तक और संताली भाषा विजय का ट्रनिंग पोइंट पुस्तक भेंट किया। टीएसआरएस में परंपरा के नाम पर चालू वंशानुगत ग्राम प्रधान या माझी बाबा के द्वारा संविधान और जनतंत्र विरोधी कार्रवाइयों पर गंभीर चिंता व्यक्त किया। कहा – लगता है, भारत में जनतंत्र लागू है सिवाय आदिवासी पॉकेट या क्षेत्रों में। उन्होंने कहा गृह मंत्रालय, भारत के साथ मिलकर इसका समाधान निकालेंगे। विट्ठल भाई पटेल हाउस, दिल्ली में राष्ट्रीय चिंतक के एन गोविंदाचार्य से मुलाकात हुई। उन्होंने टीएसआरएस में सुधार और सरना धर्म कोड की मान्यता संबंधी मामलों पर सहयोग का आश्वासन दिया और 10 और 11 सितंबर को रांची और जमशेदपुर में अपने साथियों के बीच में इन मुद्दों को उठाने का भरोसा दिया।
30 अगस्त को केंद्रीय साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासन राव से मुलाकात हुई। आदिवासी गांव समाज में सुधार हेतु टीएसआरएस पर चर्चा हुई। उनसे चिंता जाहिर किया कि संताली कवि, लेखकों द्वारा आदिवासी समाज सुधार वाली रचनाओं की घोर कमी दिखती है। समाज को इसकी जरूरत है। उन्होंने चिंता को स्वीकार किया। सहयोग का आश्वासन दिया।
31अगस्त को हरियाणा के फरीदाबाद में 80 वर्षीय रिटायर्ड आईएएस अफसर एनसी सक्सेना,जो मसूरी के आईएएस प्रशिक्षण केंद्र में 8 वर्षों तक डायरेक्टर रहे, योजना आयोग और भारत कृषि मंत्रालय के सचिव के अलावा अन्य पदों पर कार्य किया। आदिवासी मामलों के जानकर रहे हैं, अनेक पुस्तकें लिख चुके हैं। वर्तमान में “इंडियन स्कूल ऑफ़ पब्लिक पालिसी, दिल्ली” के प्रोफेसर हैं। उन्होंने टीएसआरएस को छिपा हुआ एक अजूबा मगर दुर्भाग्यपूर्ण व्यवस्था बताया। उन्होंने टीएसआरएस को केंद्रित करते हुए अपने अनुभव को लिखकर साझा करने के हमारे प्रार्थना को स्वीकार किया।
31 अगस्त की शाम को नेशनल कमिशन फॉर एसटी के अध्यक्ष हर्ष चौहान और सदस्य पूर्व सांसद आनंत नायक के साथ मुलाकात हुई। टीएसआरएस पर विस्तृत चर्चा हुई। इन्हें भी सेंगेल पुस्तक दी गई। इसमें टीएसआरएस पर राष्ट्रपति को लिखे पत्र का विस्तृत चर्चा है। अध्यक्ष ने कहा मध्यप्रदेश के झाबुआ जिला जहां से मैं आता हूं, वहां हमारे आदिवासी समाज में माझी बाबा को तड़वी कहा जाता है। हमने वहां बहुत सुधार किया है। आदिवासी सेंगेल अभियान के कार्यक्षेत्र झारखंड बंगाल बिहार उड़ीसा आसाम में भी हम लोग इसमें सुधार लाएंगे। कस्टमरी लॉ के नाम पर संविधान, कानून और मानव अधिकारों का गला घोंटना गलत है।आदिवासी गांव में कार्यरत पुलिस प्रशासन को भी ठीक करना होगा। क्योंकि वे कंफ्यूजन में या लापरवाही में जुर्माना, सामाजिक बहिष्कार, डायन प्रथा आदि क्रिमिनल कार्रवाइयों पर रोकथाम हेतु सक्रिय भूमिका निभाने की बजाय अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। उन्होंने टीएसआरएस पर सुधार हेतु महामहिम राष्ट्रपति को जल्द एक विस्तृत रिपोर्ट प्रेषित करने का आश्वासन दिया। ताकि सरकार उस पर विचार कर समाज में आवश्यक सुधार लागू कर सकें।
एक सिंतबर को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के वाईस चांसलर प्रोफेसर शांतिश्री डी पंडित से मिले। उन्हें भी सेंगेल पुस्तक और दूसरे दिन सिदो मुर्मू का फोटो फ्रेम भेंट किया। उन्होंने संताल हूल और सिदो मुर्मू के नेतृत्व को भारत के स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक घटना बताया। टीएसआरएस और अन्य आदिवासी मामलों को जे एन यू और अन्य अकैडमिक संस्थानों से मिलकर योगदान करने का भरोसा दिया।
2 सितंबर को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के कार्यालय गए। जहां आयोग के अध्यक्ष जस्टिस ए के मिश्रा से मुलाकात नहीं हो सकी। परंतु उनके नाम एक ज्ञापन पत्र उनके प्राइवेट सेक्रेटरी मंजू को सुपुर्द किया। डायन प्रथा के खात्मा के लिए विशेष आग्रह किया।
तत्पश्चात राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा से उनके निवास में मुलाकात हुई। उन्हें ज्ञापन पत्र के साथ सेंगेल पुस्तक और सीदो मुर्मू का फोटो फ्रेम भेंट किया। उन्हें झारखंड की दो महिलाओं के साथ हुई दरिंदगी पर न्याय, सुरक्षा और प्रत्येक परिवार को एक – एक करोड़ रुपयों का मुआवजा देने तथा दोनों अपराधियों को दंडित करने संबंधी आग्रह किया। उनको 5 प्रदेशों के लिए विशेष कार्य दल बनाकर आदिवासी महिलाओं की दुर्दशा पर सुधार और खासकर डायन के नाम पर निरंतर निर्दोष आदिवासी महिलाओं की प्रताड़ना और हत्या की रोकथाम के लिए ठोस कदम उठाने का आग्रह किया। उन्होंने उचित कदम उठाने का आश्वासन दिया। संताल हूल और सिदो मुर्मू के बारे में विस्तृत जानकारी लेते हुए द्रौपदी मुर्मू जी के राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों की प्रतिक्रिया जानने की इच्छा व्यक्त किया। हमने बताया कि उम्मीदें बहुत हैं मगर मन में शंकाएं भी हैं।
संध्या समय संडे गार्जियन के वरिष्ठ पत्रकार नवतन कुमार से टीएसआरएस पर विस्तृत चर्चा हुई। तत्पश्चात प्रोफेसर डॉ संजय पासवान, पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर (दलित एक्सपर्ट) और पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा वर्तमान एमएलसी से दिल्ली में टीएसआरएस पर सुधार संबंधी बातचीत हुई। उन्होंने भी सहयोग का आश्वासन दिया।
टीएसआरडीएस पर सुधार संबंधी 10 दिनों का दिल्ली दौरा ऐतिहासिक, ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक था। उम्मीद है आदिवासी स्वशासन व्यवस्था या ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में सर्वोच्च नीति निर्धारकों, प्रशासकों और बुद्धिजीवियों की मुलाकात- बातचीत और सहयोग से आदिवासी समाज में सुधार होगा। सपनों को साकार करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण और बृहद्द एकता बन सकेगा। परन्तु मंजिल मिलने तक आदिवासी गांव समाज में आंतरिक और वाह्य सहयोग से सुधार के प्रयास जारी रहेंगे।