प्रधानमंत्रीजी, आदिवासियोंं को दें धार्मिक व भाषायी आजादी:

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डीजे न्यूज, गिरिडीह : पूर्व सांसद एवं आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आदिवासियों को धार्मिक आजादी दिलाने की अपील की है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में सालखन मुर्मू ने बताया कि लाल किले के प्राचीर से 15 अगस्त को आपने 5 संकल्पों का जिक्र किया है। हम भारत के आदिवासी भी देश की एकता, अखंडता को मजबूत बनाने और विरासतों पर गर्वान्वित होकर अपने नागरिकी कर्तव्यों का निर्वाहन करते हुए विकसित भारत बनाने को तत्पर हैं। यहीं जीना और मरना है। अंग्रेजों के खिलाफ सिदो मुर्मू और बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आज़ादी की जनक्रांति का हमारा महान इतिहास रहा है। परन्तु गुलामी के कुछ अंश अभी भी बाकी हैं। प्रधानमंत्री जी, हमें हमारा धार्मिक आज़ादी दे दो।
हम भारत के प्रकृति पूजक आदिवासी न हिंदू हैं न मुसलमान न ईसाई। हम सरना धर्म के नाम से प्रकृति की पूजा में निरत हैं। प्रकृति ही हमारा पालनहार है, ईश्वर है। हमारे पूजा-पाठ, सोच संस्कार, रीति रिवाज, पर्व त्योहार प्रकृति के साथ अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। यह हमारे अस्तित्व और अस्मिता का भी मामला है। अतएव हमें भारत देश में अनुच्छेद -25 के तहत अविलंब धार्मिक आजादी मिले। सरना धर्म कोड के धार्मिक पहचान के साथ हमें जनगणना में शामिल किया जाए। हमें दूसरे धर्मों की गुलामी के लिए मजबूर न किया जाए। आज प्रकृति और पर्यावरण की चिंता विश्वव्यापी है। अतः सरना धर्म की मान्यता से प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण में भी सहयोग मिलेगा। जो आदिवासी प्रकृति पूजा – सरना धर्म से दूर दूसरे धर्मों को भटक गए हैं, उनसे भी निवेदन है वे अपनी प्रकृति पूजा के मूल धर्म में अविलंब वापस लौटें। अन्यथा उन्हें प्रकृति- पर्यावरण और आदिवासी विरोधी ही माना जा सकता है।
सालखन मुर्मू ने पत्र में यह भी लिखा है कि हमें भाषाई गुलामी से भी आजादी चाहिए। 75 वर्षों में हमें दूसरी भाषाओं का गुलाम बनाकर रखा गया है। आदिवासी भाषाओं में एकमात्र बड़ी भाषा – संताली भाषा, आठवीं अनुसूची में 22 दिसंबर 2003 को शामिल होने के बावजूद अब तक बाकी 21 राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भाषाओं की तरह दो दशकों के बावजूद पठन-पाठन, सरकारी कार्य, रोजगार और व्यापक संवाद का हिस्सा नहीं बन सका है। अतएव हमारी मांग है – संताली भाषा को अनुच्छेद- 345 के तहत आदिवासी प्रदेश – झारखंड प्रदेश में प्रथम राजभाषा का दर्जा दिया जाए।
प्रधानमंत्री को यह भी बताया है कि देश एक है, संविधान एक है, जाति एक है, तो झारखंडी आदिवासी, जो सदियों से असम और अंडमान में रच वस गए हैं, उन्हें अबतक अनुसूचित जनजाति या एसटी का संवैधानिक दर्जा अनुच्छेद -342 के तहत क्यों नहीं दिया गया है ? यहां गुलामी के बचे हुए अंश को आजादी में परिवर्तित करने हेतु एसटी का दर्जा देकर आदिवासी को गौरवान्वित करना जरूरी है। इन्हें अंग्रेजों के द्वारा जबरन दुरूह और चाय बागान क्षेत्रों में लिए जाने के बावजूद कठिन परिस्थितियों में भी देश की आर्थिक- सामाजिक समृद्धि में अपना विशेष योगदान करते रहे हैं। दूसरी तरफ इसी प्रकार भारत देश के अनेक नागरिक अंग्रेजों द्वारा फिजी, मॉरीशस, जमैका, त्रिनिदाद, युगांडा, दक्षिण अफ्रीका इत्यादि देशों में बसाये गए और वे वहां अब उन देशों के नागरिक ही नहीं उन देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का भी दर्जा को प्राप्त कर रहे हैं। हम झारखंडी आदिवासी संताल, मुंडा, हो, उरांव, भूमिज आदि असम और अंडमान में क्यों आदिवासी का दर्जा प्राप्त करने से वंचित रखे गए हैं?
पत्र में बताया है कि
इंडिया, देट इज भारत, सेल बी ए यूनियन ऑफ स्टेटस – अनुच्छेद 1. भारत अनेक राज्यों का एक राष्ट्र है, अर्थात अनेक उप- राष्ट्रीयताओं से बना एक महान राष्ट्रीयता है। जैसे बंगाली, बिहारी, उड़िया, पंजाबी, गुजराती, तेलुगू, तमिल इत्यादि। उसी तर्ज पर आदिवासियों के लिए भी बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर 2000 को झारखंड प्रदेश का गठन हुआ। उम्मीद थी झारखंड प्रदेश, आदिवासी (झारखंडी) उपराष्ट्रीयता के समृद्धि का एक केंद्र स्थापित होगा। दुर्भाग्य से दो दशकों के झारखंड में झारखंड के आदिवासी और उनकी हासा, भाषा, जाति, धर्म, इज्जत,आबादी,रोजगार,
चास-वास और संवैधानिक अधिकार लुटने- मिटने की कगार पर खड़ा है। अतएव यहां भी उपराष्ट्रीयता की गुलामी से आजादी के लिए झारखंड प्रदेश को आदिवासी (झारखंडी) उपराष्ट्रीयता की समृद्धि के लिए सभी संवैधानिक, कानूनी, मानव अधिकारों को लागू किया जाए। अन्यथा फिर से भारत के आदिवासी अपने आदिवासी शक्ति केंद्र- झारखंड को खोने के साथ-साथ बाकी उप राष्ट्रीयताओं के गुलाम की तरह जीने को विवश हो सकते हैं।
साथ ही यह भी बताया है कि
आदिवासी गांव- समाज में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था या ट्राईबल सेल्फ रूल सिस्टम युग-युग से चालू है। इसमें वंशानुगत नियुक्त अधिकांश अशिक्षित, नशा करनेवाले, संविधान- कानून से अनभिज्ञ ग्राम प्रधान (माझी बाबा) गांव -समाज को चलाते हैं। अंततः गांव समाज में डायन प्रथा, अंधविश्वास, नशापान, ईर्ष्या द्वेष,महिला विरोधी मानसिकता, हंड़िया दारु चखना में वोट की खरीद- बिक्री, जुर्माना, सामाजिक वहिष्कार इत्यादि हावी है। और यह स्वशासन व्यवस्था स्वशोषण का रूप लेते हुए अन्याय, अत्याचार, शोषण आदि को खत्म करने की जगह बढ़ाने का काम कर रहा है। यह सेल्फ इंपोज्ड स्लेवरी और सती प्रथा की तरह आत्मघाती है। अतएव यहां भी गुलामी से आजादी के लिए जनतांत्रिक सुधार और संविधान -कानून, मानव अधिकारों को लागू करना अविलंब जरूरी है। यह केंद्र,राज्य सरकारों और सबके सहयोग से संभव है।
ज्ञातव्य हो कि सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए आदिवासी सेंगेल अभियान ने संताल हूल दिवस (30 जून,1855- क्रांति दिवस), 30 जून 2022 को दिल्ली के जंतर मंतर में धरना प्रदर्शन कर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को ज्ञापन सुपुर्द किया। अब सरना धर्म कोड मांग के लिए उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में 20 सितंबर और बंगाल की राजधानी कोलकाता में 30 सितंबर को धरना प्रदर्शन किया जाएगा। इसमें 5 प्रदेशों के आदिवासी शामिल होंगे। ज्ञातव्य हो कि झारखंड और बंगाल की सरकारों ने सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए भारत सरकार को अपनी अनुशंसा प्रदान कर दिया है। उसी तर्ज पर उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को भी इसके लिए 11 अगस्त को एक पत्र प्रेषित कर आग्रह किया गया है। सरना धर्म कोड की मान्यता, संताली राजभाषा, झारखंड दिशोम आदिवासियों का गढ़ या शक्ति केंद्र, आसाम -अंडमान के आदिवासियों को एसटी का दर्जा और ट्राईबल सेल्फ रुल सिस्टम में सुधार और जनतंत्र एवं संविधान को लागू करने की 5 प्रमुख मांगों को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आदिवासी अधिकार घोषणा -पत्र की तिथि के आलोक में 13 सितंबर को 5 प्रदेशों के लगभग 250 प्रखंडों में धरना प्रदर्शन का आयोजन करते हुए आदिवासी सेंगेल अभियान के कार्यकर्ता स्थानीय बीडीओ के मार्फत महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना ज्ञापन- पत्र सौंपेंगे।

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