भगवान का सानिध्य के लिए साधना आवश्यक : हरिदास जी महाराज

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डीजेन्यूज लोयाबाद (धनबाद) : बिना साधना के भगवान का सानिध्य नहीं मिलता। । शुद्ध भाव से की गई परमात्मा की भक्ति सभी सिद्धियों को देने वाली है। गोपियों को भगवान श्री कृष्ण का सानिध्य इसलिए मिला, क्योंकि वे भगवान के सानिध्य की इच्छा को लेकर कठोर साधना की थी। जितना समय हम इस दुनिया को देते हैं, उसका पांच प्रतिशत भी यदि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लगाएं तो भगवान की कृपा निश्चित मिलेगी।यह बातें शनिवार की रात में एकडा राधा कृष्ण प्रेम मंदिर के वार्षिकोत्सव के मौके चल रहे नौ दिवसीय भागवत कथा में सुरेंद्र हरिदास जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कही। कथा के दौरान कृष्ण की भक्ति में लीन हो कर प्रस्तुत किए जा रहे भजनों पर रात भर श्रद्धालु भक्ति के सागर में गोता लगाते रहे। कहा कि जो सनातनी है वो सब एक हैं। चाहे वह किसी भी जाति में या किसी भी वर्ण में हो। हम सब एक ठाकुर जी के है ठाकुर जी हमारे है। कहा कि तीन गलतियों के कारण मनुष्य असमय बुढा दिखने लगते हैं। उम्र से ज्यादा बुजुर्ग दीखाई देने लगते हैं। और बीमारियों को आमंत्रित कर लेते हैं। पहली गलती है नशा करना। जो व्यक्ति नशा करता है उसके चेहरे की चमक समाप्त हो जाती है। दूसरी गलती है मानसिक तनाव। जो मनुष्य मानसिक तनाव अधिक लेता है। अधिक सोचता है वो मेंटली डिस्टर्ब हो जाता है और अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है। मानसिक तनाव लेने के बजाय जीवन में कोई समस्या आ जाये तो उसके निवारण के बिषय में सोचना चाहिए।
तीसरा है ब्रह्मचर्य। जितना हम ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे उतनी ही हमारे चेहरे पर चमक बुद्धि में तीव्रता और आयु जीने की क्षमता हमारी और बढ़ती चली जाएगी। जिसका ब्रह्मचर्य सुरक्षित नहीं है वो जल्दी वृद्ध होगा वो जल्दी मृत्यु को भी प्राप्त होगा। ऋषि मुनियों ने परंपरा बनाई जन्म से लेकर 25 साल तक ब्रह्मचारी जीवन में व्यक्ति को रहना चाहिए।
श्री सुरेन्द्र हरीदास जी महाराज ने कहा कि गोपियों ने श्री कृष्ण को पाने के लिए त्याग किया परंतु हम चाहते हैं कि हमें भगवान बिना कुछ किये ही मिल जाये, जो की असम्भव है।
जब भगवान प्रकट हुए तो गोपियों ने भगवान से 3 प्रकार के प्राणियों के विषय में पूछा। 1 . एक व्यक्ति वो हैं जो प्रेम करने वाले से प्रेम करता हैं। 2 . दूसरा व्यक्ति वो हैं जो सबसे प्रेम करता हैं चाहे उससे कोई करे या न करे। 3 . तीसरे प्रकार का प्राणी प्रेम करने वाले से कोई सम्बन्ध नही रखता और न करने वाले से तो कोई संबंध हैं ही नही। आप इन तीनो में कोनसे व्यक्ति की श्रेणियों में आते हो? भगवान ने कहा की गोपियों! जो प्रेम करने वाले के लिए प्रेम करता हैं वहां प्रेम नही हैं वहां स्वार्थ झलकता हैं। केवल व्यापर हैं वहां। आपने किसी को प्रेम किया और आपने उसे प्रेम किया। ये बस स्वार्थ हैं। दूसरे प्रकार के प्राणियों के बारे में आपने पूछा वो हैं माता-पिता, गुरुजन। संतान भले ही अपने माता-पिता के , गुरुदेव के प्रति प्रेम हो या न हो। लेकिन माता-पिता और गुरु के मन में पुत्र के प्रति हमेशा कल्याण की भावना बनी रहती हैं। लेकिन तीसरे प्रकार के व्यक्ति के बारे में आपने कहा की ये किसी से प्रेम नही करते।
श्री कृष्ण कहते हैं की गोपियों इनमे से मैं कोई भी नही हूँ। मैं तो तुम्हारे जन्म जन्म का ऋणियां हूँ। सबके कर्जे को मैं उतार सकता हूँ पर तुम्हारे प्रेम के कर्जे को नहीं। तुम प्रेम की ध्वजा हो। संसार में जब-जब प्रेम की गाथा गाई जाएगी वहां पर तुम्हे अवश्य याद किया जाओगे ।कार्यक्रम को सफल बनाने में मोहन निषाद,नंद कुमार बीपी,उदय राम, अशोक सिंह, रोहित, धर्मेंद्र, आदि सराहनीय योगदान दे रहे हैं।

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