ऐसे थे लाल बहादुर शास्त्री

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ऐसे थे लाल बहादुर शास्त्री 

गुदड़ी के लाल लालबहादुर शास्त्री की जयंती पर एक शिक्षक के कलम से

डीजे न्यूज, धनबाद : लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को ‘मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव’ व राम दुलारी के यहां मुगलसराय उत्तर प्रदेश के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। ऐसे में सब उन्हें ‘मुंशी जी’ ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी कर ली थी।

लालबहादुर को बचपन मे ‘नन्हें’ कह कर बुलाया जाता था।

इनकी प्राथमिक शिक्षा मिर्जापुर में हुई। आगे की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। वे संस्कृत भाषा से स्नातक किये।

काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही शास्त्री जी ने अनपे नाम के साथ जन्म से चला आ रहा।जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया।

इसके पश्चात ‘शास्त्री’ शब्द ‘लालबहादुर’ के नाम का पर्याय ही बन गया।

“मरो नहीं, मारो” का नारा लालबहादुर शास्त्री ने दिया जिसने एक क्रान्ति को पूरे देश में प्रचण्ड किया। उनका दिया हुआ एक और नारा ‘जय जवान-जय किसान’ तो आज भी लोगों की जुबान पर है।

भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गांधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के एक कार्यकर्ता लाल बहादुर शास्त्री जी जेल गए। रिहा होने पर उन्होंने एक राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय काशी विद्यापीठ में अध्ययन किया और स्नातकोत्तर शास्त्री (शास्त्रों का विद्वान) की उपाधि पाई।

1928 में इनका विवाह ललित शास्त्री के साथ हुआ।

संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे 1920 में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और भारत सेवक संघ से जुड़ गए और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की।

शास्त्रीजी सच्चे महात्मा थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। इन्होंने सक्रिय रूप से 1921 में असहयोग आंदोलन,1930 में दांडी यात्रा व 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।आदि

1961 में गृह मंत्री के प्रभावशाली पद पर नियुक्ति के बाद उन्हें एक कुशल मध्यस्थ के रूप में प्रतिष्ठा मिली। तीन साल बाद बिना किसी विभाग का मंत्री नियुक्त किया गया और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की मृत्यु के बाद जून 1964 में वह भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री बने।

जम्मू-कश्मीर के विवादित प्रांत पर पड़ोसी पाकिस्तान के साथ 1965 में हुए युद्ध में उनके द्वारा दिखाई गई दृढ़ता के लिए उनकी बहुत प्रशंसा हुई।

अचानक 1965 के सांय 7.30 बजे जब पाकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला कर दिया। तब उन्होंने तीनों सेना प्रमुख को कहा– आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइए कि हमे क्या करना है। इस विकट स्थिति में उन्होंने सराहनीय नेतृत्व किया और पाकिस्तान को धूल चटाया। पाक ने हार की कल्पना भी नहीं कि होगी।

आकाल और लड़ाई को इन्होंने सामंजस्य बिठाने में कामयाब रहे और जय जवान – जय किसान के नारा को बुलंद किया।

ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध न करने की ताशकंद घोषणा के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद उनकी मृत्यु रहस्यमय तरीके से11 जनवरी 1966 को हो गई |

शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हें मरणोपरान्त वर्ष 1966 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

इस महान महापुरुष को कोटि कोटि नमन।

राजकुमार वर्मा,

वरीय शिक्षक

राज्य पुरस्कार से सम्मानित

स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग

झारखंड धनबाद

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