गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय

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गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय

शिक्षाविद, दार्शनिक भारत रत्न सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्म दिन पर एक शिक्षक के कलम से

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय

बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए

महान कवि कबीर दास की उक्ति के साथ – पूर्व संध्या पर –शिक्षक दिवस 5 सितंबर 2023 भारत के समस्त शिक्षकों, प्रोफेसरों, प्राचार्यों, रिसर्च वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों के लिए गर्व सह सम्मान व संकल्प का दिन है। इसी दिन 5 सितंबर 1888 को जन्मे महान शिक्षाविद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को धूम धाम से वर्ष 1962 से मनाते आ रहे हैं। शिक्षक दिवस के जनक राधाकृष्णन हैं। इनका संदेश एजुकेशन व स्टूडेंट्स के प्रति उल्लेखनीय दृष्टिकोण रखता है और शिक्षक को आदर्श। गुरु शिष्य का संबंध दीया और बाती की तरह है।जिससे बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो।

भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतानी में एक तेलगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी व माताजी सीतम्मा था। इनका विवाह सिवाकमु नामक कन्या से 1904 में 16 वर्ष की आयु में हुआ था।

ये प्रारंभिक शिक्षा व उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1906 में दर्शनशास्त्र से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल किये। ये बचपन से ही लगनशील, मेधावी व अव्वल छात्र थे। इनके प्रतिभा के आगे निर्धनता भी बौना पड़ गया। राधाकृष्णन पूरे जीवन शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के कारण स्कॉलरशिप प्राप्त किये।

1909 में मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक बने और डॉ राधाकृष्णन इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी भारतीय दर्शन शास्त्र के शिक्षक के रूप में शिक्षा दी।

इन्होंने बनारस विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद को भी सुशोभित किया। बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ साथ देश के संस्कृति से गहरा लगाव भी था।

स्वतंत्र भारत में 1947 से 1949 तक संविधान निर्मात्री सभी के सदस्य के रूप में कार्य किये।

आजाद भारत में 13 मई 1952 को देश के प्रथम उपराष्ट्रपति बने और दो कार्यकाल तक रहे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति के बाद 13 मई 1962 को भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने व 13 मई 1967 तक रहे।

शिक्षा और राजनीतिक में बहुमूल्य व उत्कृष्ट योगदान देने के लिए 1954 में सर्वोच्च अलंकार भारत रत्न से महान शिक्षाविद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सम्मानित किया गया।

इनकी समाज के प्रति उल्लेखनीय कृति व योगदान के पोप जॉन पाल ने गोल्डन सपर से भेंट की। ब्रिटिश ( इंग्लैंड) सरकार ने आर्डर ऑफ मेरिट से इन्हें सम्मानित किया।

उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिये भी नामित किया गया।

धर्म और समाज, जीवन और दर्शन, गौतम बुद्धा, भारत और विश्व आदि पर अक्सर अंग्रेजी में किताबे लिखते थे।

 

समाज के प्रखर संवाहक,प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक, आस्थावान हिन्दू विचारक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का 17 अप्रैल 1975 को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।

मरणोपरांत अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रथम गैर ईसाई समुदाय के व्यक्ति को मिला।

उनका गहरा मानना था कि — शिक्षकों को देश का सबसे अच्छा दिमाग होना चाहिए।

शिक्षक वही अच्छा है जो बच्चों से विश्वास व स्नेह अर्जित करता है।

विद्यार्थियों में नैतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक, सामाजिक,व्यावसायिक, सामाजिक समरसता संचरण आदि मूल्यों को विकसित करने पर जोड़ देते थे। जिससे छात्र सर्वोत्तम शिक्षा ग्रहण कर सके और बेहतर संस्कारी इंसान बनकर राष्ट्र व समाज की सेवा कर सके। शिक्षक और छात्र में समन्वय हो और एक दूसरे के पूरक भी आदि।

40 वर्ष तक एक आदर्श शिक्षक बन कर रहे। इनके अनमोल कृति को याद व स्मरण कर हम शिक्षकों को नित्य एक नई प्रेरणा व ऊर्जा मिलती है। जिससे हमसभी शिक्षक सेवा भाव से छात्र छात्राओं नियमित शिक्षा का अलख जगाने का प्रयास कर रहे हैं।

इसलिए कबीर दास जी ने कहा है–

गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट

अंतर हाथ सहार दे बाहर बाहे चोट।

समाज में शिक्षकों की महत्ता सर्वोत्तम है। इस महत्ता को बनाये रखने के लिए हमें इनके बताए हुए मार्ग पर चलना हो। जो समस्त गुरुओं के लिए अनुकरणीय है। इस उक्ति को सदैव सकारात्मक सोच के साथ गतिमान व प्रकाशमान रखना होगा। —

कुछ नहीं होगा कोसने से अंधेरे को

अपने हिस्से का दीया खुद ही जलाना होगा

 

राजकुमार वर्मा

वरीय शिक्षक

सह

राज्य स्तरीय पुरस्कार से पुरस्कृत

स्कूली शिक्षा एवं साक्षात्कार विभाग

राज्य साधन सेवी, परिवर्तन दल सदस्य

धनबाद झारखंड

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