राष्ट्रपति ने झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन का किया उदघाटन
वरीय न्याय सेवा मेंं आदिवासियों की उपस्थिति नगण्य,आरक्षण का हो प्रावधान : हेमंत सोरेन
डीजे न्यूज, रांची : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बुधवार को यहां
झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन का उद्घाटन किया। समारोह में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, भारत के मुख्य न्यायाधीश डा० न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, केंद्रीय
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्त्ति अनिरूद्ध बोस, झारखण्ड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा मुख्य रूप से मौजूद थे।
इस मौके पर समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि
लगभग 165 एकड़ में फैले इस परिसर में झारखण्ड उच्च न्यायालय भवन का निर्माण 600 करोड़ रुपए की लागत से कराया गया है। एक आदिवासी बाहुल्य छोटे राज्य में यह भवन तथा परिसर देश के किसी भी उच्च न्यायालय के भवन तथा परिसर से बड़ा है। मुझे आशा है कि झारखण्ड राज्य जहां आदिवासी, दलित, पिछड़े एवं गरीब लोगों की बहुलता है, उन्हें सरल, सुलभ, सस्ता तथा तीव्र न्याय दिलाने की दिशा में यह संस्थान एक मील का पत्थर साबित होगा।
गत वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति महोदया द्वारा पूरे देश के जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या पर अपनी चिंता व्यक्त की गई थी। झारखण्ड में भी छोटे-छोटे अपराधों के लिए बड़ी संख्या में गरीब आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक एवं कमजोर वर्ग के लोग जेलों में कैद हैं। यह चिन्ता का विषय है। इस पर गंभीर मंथन की जरूरत है।
गत वर्ष हमने ऐसे मामलों की सूची तैयार करायी, जो अनुसंधान हेतु 05 वर्षों से अधिक अवधि से लंबित थे। उनकी संख्या लगभग 3,600 (तीन हजार छः सौ ) थी। एक अभियान चलाकर इनमें से 3,400 (तीन हजार चार सौ से अधिक मामलों का निष्पादन कराया गया है। अब हमने 04 वर्षों से अधिक अवधि से लंबित मामलों की सूची तैयार की है। इनकी संख्या भी लगभग 3,200 (तीन हजार दो सौ ) हैं। हम प्रयास कर रहे हैं कि इन मामलों का निष्पादन अगले छः माह के अंदर कर दिया जाय। मैं इसकी लगातार monitoring कर रहा हूँ।
Subordinate judiciary में सहायक लोक अभियोजकों की कमी के कारण मामलों के निष्पादन में दिक्कतें आ रही थी। गत माह ही हमने 107 सहायक लोक अभियोजकों की नियुक्ति की है और मुझे आशा है कि इससे मामलों के निष्पादन में तेजी आएगी।
मुझे भारत के मुख्य न्यायाधीश को सुनने का मौका मिला है। आप subordinate judiciary की गरिमा और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए चिंतित रहते हैं। मैं आपको बताना चाहूँगा कि झारखंड राज्य में subordinate judiciary के इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर भी बहुत बेहतर कार्य हुआ है। मुझे लगता है कि देश में सबसे अच्छी स्थिति हमारे राज्य की है। आज झारखंड में कुल 506 न्यायिक पदाधिकारी कार्यरत हैं, जिनके लिए 658 court rooms तथा 639 आवास उपलब्ध हैं। Subordinate judiciary के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भविष्य में भी जो आवश्यकताएँ होंगी राज्य सरकार उसको प्राथमिकता देगी ।
टेक्नोलॉजी का उपयोग कर न्यायिक प्रणाली को कैसे सरल, सुलभ, सस्ता तथा तीव्र बनाया जाए, इसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा अच्छी पहल की जा रही है। मैं उसकी सराहना करता हूँ और आपको आश्वस्त करना चाहूँगा कि अगर इस कार्य के लिए कोई भी प्रोजेक्ट झारखंड के लिए तैयार किया जाएगा तो सरकार उसे fully support करेगी।
झारखंड राज्य में Superior Judicial Service में आदिवासी समुदाय की नगण्य उपस्थिति एक चिंता का विषय है। इस सेवा की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान नही रखा गया है। चूँकि इसी सेवा से माननीय उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं, इसलिए उच्च न्यायालय में भी वही स्थिति है। अतः मैं चाहूँगा कि इस आदिवासी बाहुल्य राज्य में वरीय न्याय सेवा की नियुक्ति प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान किया जाय।
भारत सरकार द्वारा subordinate judiciary के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए Centrally Sponsored Scheme चलाई जा रही है, परंतु ऐसी कोई स्कीम उच्च न्यायालयों के लिए उपलब्ध नहीं है। अगर जमीन की कीमत जोड़ ली जाए तो राज्य सरकार द्वारा झारखंड उच्च न्यायालय के इस नए भवन पर लगभग 1,000 (एक हजार) करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई है। इसमें केन्द्र सरकार की कोई हिस्सेदारी नहीं है। समय-समय पर उच्च न्यायालयों में भी अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता पड़ती है, अतएव मेरा अनुरोध होगा कि भारत सरकार उच्च न्यायालयों के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भी एक Centrally Sponsored Scheme लागू करें ।
मेरी मान्यता है कि न्यायालयों के कार्यों का निष्पादन स्थानीय भाषाओं में किए जाने की नितांत आवश्यकता है, ताकि न्याय के मंदिरों और गरीब आम जनों के बीच की दूरी कम हो सके। न्यायिक पदाधिकारियों और सहायक लोक अभियोजकों के लिए कम-से-कम एक स्थानीय भाषा का सीखना भी बाध्यकारी किया जाना चाहिए, ताकि न्याय को और सुलभ बनाया जा सके ।