वसंत पंचमी : आराधना ज्ञान की देवी की
दीपक मिश्रा
वर्ष 2022 में वसंत पंचमी का सर्वमान्य पर्व 5 फरवरी, दिन शनिवार को मनाया जायेगा। वसंतोत्सव के साथ विद्यानुरागी श्रद्धालु मां सरस्वती की प्रतिमा को स्थापित कर पूजा-अर्चना करेंगे। माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर भक्तगण धूमधाम से पूजा अर्चना करेंगे।
सरस्वती पूजा का महत्व
माता सरस्वती को विद्या की देवी माना जाता है। ऐसे में आप सरस्वती पूजा के महत्व को समझ ही सकते हैं। माता सरस्वती की कृपा से व्यक्ति कुशाग्र बुद्धि व साहित्यए कलाए शिक्षा आदि के क्षेत्र में पारंगत होता है। यहां तक ज्योतिषि भी वैसे छात्र को माता सरस्वती की आराधना करने की सलाह देते हैं जिन्हें शिक्षा या बुद्धि का योग नहीं है। अगर किसी की पढ़ाई या विद्यार्जन में रूचि नहीं है तो उन्हों भी सरस्वती पूजा करनी चाहिए क्योंकि उन्हीं की कृपा ही व्यक्ति को अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाता है। हमारे देश में यह परंपरा भी है कि वसंत पंचमी के ही दिन छोटे बच्चों द्वारा कुछ शब्द लिखवाकर शिक्षा का आगाज कराया जाता है। इसी दिन वे जीवन में पहली बार कागज, पेंसिल या फिर स्लेट पेंसिल पकड़ते हैं।
माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती की संरचना की थी। ऐसी देवी जिनके चार हाथ थे। एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला और चैथा हाथ वर मुद्रा में था। मां सरस्वती को वाणी, ज्ञान, संगीत और कला की देवी कहा जाता है। अगर आप भी सरस्वती पूजा करने जा रहे हैं तो इस विधि को अपनायें। हलांकि बेहतर यह होता है कि किसी जानकार ब्राह्मण से पूजा करवाया जाय। लेकिन ऐसी स्थिति में जब आप स्वयं कर रहे है तो बतायी गयी विधि अपना सकते हैं।
माता सरस्वती की पूजा विधि
सबसे पहले किसी पवित्र जगह माता सरस्वती की प्रतिमा रखें। फिर सामने पूजन सामग्री आदि रखें साथ ही बैठने के लिए कुश व उन का शुद्ध आसन बिछाकर बैठ जायें। दिन, तिथि, जगह, समय, स्वयं का नाम आदि का जिक्र करते हुए संकल्प करें कि आप अभिष्ट कामना के लिए पूजा करने जा रहे हैं। याद न हो तो फिर पुस्तक से स्वस्तिवाचन कर लें। संभव हो तो फिर कलश स्थापित करें। कलश स्थापना के बाद पंचदेवताए नवग्रहादि की आदि पूजा कर लें। सरस्वती पूजा के लिए पहले आह्वान करें। आसन के लिए पुष्प अर्पित करें, स्नान करायें, आचमन के जल अर्पित करें। वस्त्र अर्पित करें, श्रृंगार का सामान अर्पित करें। माता के चरणों पर गुलाल अर्पित करें। धूप, दीप दिखाएं, इसी क्रम में नैवेद्य व ़ऋतुफल भी अर्पित करें। पुस्तक, वाद्ययंत्र आदि की पूजन करें। अंत में माता की आरती करें। दूसरे दिन विसर्जन के दौरान हवन किया जाता है अगर आप खुद से हवन करने में सक्षम हों तो हवन भी कर सकते हैं।