आठ फरवरी को है अचला सप्तमी, जानें व्रत का महत्व

0
Achala_Saptami

दीपक मिश्रा 

इस पोस्ट में हम जानेंगे कि आखिर अचला  सप्तमी व्रत क्या है, कब मनाया जाता है तथा इसका क्या महत्व है। भगवान सूर्य को समर्पित अचला सप्तमी का यह व्रत माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को करने से संतान, मान सम्मान और उच्च पद की कामना पूर्ण होती है। वर्ष 2022 में अचला सप्तमी व्रत का मान आठ फरवरी को होगा। अचला सप्तमी के अलावा इसे रथ सप्तमी, मन्वदि सप्तमी, संतान सप्तमी, विधान सप्तमी, और आरोग्य सप्तमी के नामों से भी जाना जाता है । इस दिन को सूर्य जयंती के रुप में भी मनाया जाता है ।

वैसे तो पूरा माघ माह ही नदियों में स्नान का महीना है, लेकिन रथ सप्तमी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए । इस दिन प्रातः स्नान और पूजन का अलग महत्व है। स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। सूर्य देव की पूजा करें और फिर सूर्य स्तोत्र, सूर्य कवच, आदित्य हृदय स्तोत्र या सूर्य के बीज मंत्र का जाप करना बहुत ही फलदायी होता है। सूर्य को दीपदान करना और पवित्र नदियों में दीपक प्रवाहित करना भी शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत रख कर नमक और तेल के सेवन से बचना चाहिए और केवल फलाहार ही करना चाहिए।

अचला सप्तमी का महत्व.

अचला सप्तमी के दिन सूर्य की पूजा और उपवास करने से संतान की प्राप्ति होती है और साधक को आरोग्य यानी उत्तम स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दान करने से व्यक्ति के कई जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है इसलिए इस दिन स्नान और फिर दान का विशेष महत्व है।

अचला सप्तमी को लेकर प्रचलित कथा.

कथा है कि एक गणिका इन्दुमती ने वशिष्ठ मुनि के पास जाकर मुक्ति पाने का उपाय पूछा। मुनि ने कहा, ‘‘माघ मास की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत करो’। गणिका ने मुनि के बताए अनुसार व्रत किया। इससे मिले पुण्य से जब उसने देह त्यागी तब उसे इन्द्र ने अप्सराओं की नायिका बना दिया। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था। शाम्ब ने अपने इसी अभिमानवश होकर दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। दुर्वासा ऋषि को शाम्ब की धृष्ठता के कारण क्रोध आ गया, जिसके पश्चात उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ हो जाने का श्राप दे दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब से भगवान सूर्य नारायण की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने भगवान कृष्ण की आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना करनी आरम्भ कर दी। जिसके फलस्वरूप सूर्य नारायण की कृपा से उन्हें अपने कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्त हो गई।

इस खबर को शेयर करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *