मतांतरित आदिवासियों को जनजाति सूची से बाहर करना जरूरी : सालखन

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डीजे न्यूज, रांची :

सालखन मुर्मू ने कहा है कि मतांतरित आदिवासियों को जनजाति सूची से बाहर करना जरुरी है। अन्यथा असली आदिवासी बर्बाद हो जायेंगे। सेंगेल हर हाल में सरना धर्म कोड को लेने के लिए कटिबद्ध है। उन्होंने बताया कि

फिलहाल आदिवासी सेंगेल अभियान पांच लक्ष्यों को सफल बनाने के लिए पूरी निष्ठा और गंभीरता के साथ पांच प्रदेशों – झारखंड बंगाल बिहार उड़ीसा असम में प्रतिदिन क्रियाशील है। पांच मुद्दे हैं :

 

सरना धर्म कोड (अर्थात प्रकृति पूजा धर्म) की मान्यता और जनगणना में शामिल करना।

 

आसाम -अंडमान के झारखंडी आदिवासियों को एसटी का दर्जा दिलाना।

 

बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर बने झारखंड प्रदेश को आदिवासी सपनों का झारखंड – अबुआ दिसुम अबुआ राज बनाना।

 

झारखंड प्रदेश में आठवीं अनुसूची में शामिल संताली भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा बनाना और बाकी झारखंडी आदिवासी भाषाओं ( मुंडा, उरांव, हो, भूमिज, खड़िया आदि) को यथोचित मान्यता प्रदान करना।

 

आदिवासी स्वशासन व्यवस्था या ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम (TSRS) में जनतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों को समाहित करते हुए सुधार लाना।

 

उपरोक्त मुद्दों को सफल बनाने के लिए सेंगेल 30 जून 2022 को दिल्ली जंतर मंतर, 20 सितंबर- भुवनेश्वर, 30 सितंबर- कोलकाता, 18 अक्टूबर- रांची, 4 नवंबर- गुवाहाटी और 25 नवंबर को पटना गांधी मैदान में जोरदार धरना, प्रदर्शन जनसभाओं का आयोजन किया गया। इसमें 5 प्रदेशों के हजारों कार्यकर्ता अपने अपने समय और संसाधनों से शामिल हुए।

 

अब सेंगेल द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ हुई प्रथम सर्वाधिक बड़ी जनक्रांति (कार्ल मार्क्स के अनुसार) – संताल विद्रोह (30 जून 1855) के विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए 22 दिसंबर को हासा- भाषा जीतकर माहा (मातृभूमि- मातृभाषा विजय दिवस) मनाने का निर्णय लिया गया है। क्योंकि 22 दिसंबर 1855 को संताल परगना प्रदेश और संताल परगना टेनेंसी कानून का गठन हुआ था। 22 दिसंबर 2003 को संताली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। अतएव 22 दिसम्बर 22 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य अतिथि के रूप में रांची के मोरहाबादी मैदान में आमंत्रित किया गया है। अभी स्वीकृति नहीं मिली है। मगर विभिन्न माध्यमों से उनकी उपस्थिति को सफल बनाने के प्रयास जारी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, वर्तमान केंद्रीय इस्पात मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, राम माधव, मान्यवर डा संजय पासवान आदि का सहयोग प्राप्त हो रहा है।

 

सरना धर्म कोड की मान्यता से प्रकृति पर्यावरण की सुरक्षा के साथ भारत की प्राचीनतम आदिवासी भाषा- संस्कृति और जीवन मूल्यों का धरोहर बच सकता है। हम भारत के आदिवासी प्रकृति पूजक हैं। प्रकृति पूजा धर्म अर्थात सरना धर्म को बचाए रखना चाहते हैं। संविधान इसकी इजाजत देता है। हम विदेशी धर्मों भाषा संस्कृति के अतिक्रमण के खिलाफ हैं। मतांतरित आदिवासियों को जनजाति सूची से बाहर करना जरुरी है। 20 जनवरी 2023 तक इसका हल निकल जाएगा अन्यथा अन्य तमाम आदिवासी संगठनों के साथ मिलकर 30 जनवरी को राष्ट्रव्यापी रेल रोड चक्का जाम को हम मजबूर हो सकते हैं।

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