प्रख्यात आलोचक प्रो.मैनेजर पांडेय की स्मृति में श्रद्धांजलि गोष्ठी

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डीजे न्यूज, गिरिडीह :स्मार्ट ड्रीम एकादमी, मकतपर के कक्ष में जन संस्कृति मंच और जनवादी लेखक संघ की तरफ से प्रख्यात आलोचक और चिंतक प्रो.मैनेजर पांडेय की स्मृति में एक श्रद्धांजलि गोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रो. पांडेय का दो दिन पूर्व 6 नवंबर को दिल्ली में देहांत हो गया है। प्रो.मैनेजर पांडेय जेएनयू. के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफेसर थे। वह रामविलास शर्मा और नामवर सिंह के साथ और उनके बाद हिंदी के प्रख्यात आलोचक और चिंतक थे।
इस गोष्ठी में अनेक वक्ताओं ने प्रो.मैनेजर पांडेय के लेखन और उनकी वैचारिकी पर अपनी अपनी बातें रखीं। जसम के झारखंड के सचिव प्रो. बलभद्र ने मैनेजर पांडेय की स्मृति को सलाम करते हुए कहा कि रामविलास शर्मा के बाद मैनेजर पांडेय ही ऐसे आलोचक और विचारक थे जिन्होंने साम्राज्यवाद और नव साम्राज्यवाद के बारे में अनवरत लेखन किया है। सूरदास से लेकर मुगल बादशाहों की हिंदी कविता तक के वे गंभीर अध्येता थे। वे ठेठ देशज मिजाज के लेखक थे और हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य की तरफ भी उनका ध्यान था।
हिंदी और अवधी के युवा कवि डॉ.शैलेंद्र कुमार शुक्ल ने कहा कि मैनेजर पांडेय का मूल्यांकन आलोचना के क्षेत्र में नई पारी के प्रवक्ता के रूप में होगा। लोकप्रिय साहित्य को उनकी समझ बहुत मौलिक और व्यावहारिक थी। रामचंद्र शुक्ल से शुरू हुई आलोचना की धारा व परंपरा की वे एक मजबूत कड़ी थे।
परिवर्तन पत्रिका के संपादक डॉ.महेश सिंह ने पांडेय को एक निर्भीक प्रखर वक्ता और लेखक कहा। वे सत्ता की आलोचना पूरी बेबाकी से किया करते थे। उन्होंने कहा कि पांडेय ने सूर के पदों में भी राजनीति को तलाशा है। वे भाषा के भीतर की सांप्रदायिकता की शिनाख्त करने के आलोचक थे।
उर्दू के असिस्टेंट प्रोफेसर गुलाम सा ने कहा कि पांडेय हिंदी- उर्दू साहित्य और संस्कृति की समझ वाले विद्वान आलोचक थे।
जनवादी लेखक संघ के परवेज शीतल ने आज के दौर में पांडेय के लेखन की प्रासंगिकता की चर्चा की।
डॉ. चंद्रशेखर पांडेय ने कहा कि मैनेजर पांडेय कहा करते थे कि हिंदी साहित्य में व्यंग्य की विधा गांवों की जमीन से आई हुई है। उन्होंने उनके व्यंग्यबोध का जिक्र किया।
शंकर पांडेय ने कहा कि पांडेय के साहित्य चिंतन के केंद्र में समाज चिंतन है।
गोष्ठी की अध्यक्षता सामाजिक कार्यकर्ता धरणीधर प्रसाद ने की। उन्होंने अश्वघोष की वज्रसूची को केंद्र में रखते हुए मैनेजर पांडेय के आलोचनात्मक व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उर्दू के असिस्टेंट प्रोफेसर गुलाम सामदानी,
शालिनी रंजन, संजीव कुमार, हलीम असद और अखिलेश राज ने भी अपने विचार रखते हुए श्रद्धांजलि दी।
अंत में दो मिनट का मौन रख मैनेजर पांडेय के प्रति श्रद्धांजलि दी गई।

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