1932 खतियान का हौवा खड़ा कर रहा सोरेन परिवार : सालखन
डीजे न्यूज, धनबाद : झारखंड बने 22 वर्षों के बावजूद किसी भी सरकार ने स्थानीयता, आरक्षण और नियोजन नीति को स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं कर पाया है। अभी भी किसी पार्टी के पास कोई ठोस नीति उपलब्ध नहीं दिखता है। अंततः झारखंडी शिक्षित बेरोजगारों के साथ घोर अन्याय हुआ और हो रहा है। अब 1932 के खतियान का अटक- लटक जाना ( राज्यपाल द्वारा ) स्वभाविक था। चूंकि पहले भी झारखंड हाई कोर्ट द्वारा यह खारिज किया जा चुका है। सनद रहे किसी भी अन्य राज्य में खतियान आधारित स्थानीयता नीति नहीं है। स्थानीयता का जायज आधार स्थानीय भाषा- संस्कृति और स्थानीय जातिगत सूची हो सकता है। किन्तु सोरेन परिवार को जनहित से ज्यादा वोट की फिक्र है। अतः झारखंडी जन को रोजगार देने से ज्यादा 1932 के खतियान को हौवा बनाकर उन्हें जनता को दिगभ्रमित करना और झुनझुना थमाना पसंद है। ख़ातियान कभी भी लागू नहीं हो सकता है। अतः झारखंडी जन को रोजगार के लिए “प्रखंडवार नियोजन नीति” को लागू करने के आंदोलन को तेज करना चाहिए। अन्यथा नवयुवकों का बर्बाद होना तय है। यह बातें आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू एवं सुमित्रा मुर्मू ने कहीं। दोनों शनिवार को यहां सर्किट हाउस में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
यात्रा का नेतृत्व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू और सुमित्रा मुर्मू कर रहे हैं।
प्रखंडवार नियोजन नीति
झारखंड सरकार के पास उपलब्ध सभी सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों का 90% भाग ग्रामीण क्षेत्रों को आवंटित किया जाए। तत्पश्चात आबादी के अनुपात से प्रखंडवार कोटा तय किया जाए। फिर प्रखंड विशेष के कोटा को उसी प्रखंड के अवेदकों से भरा जाए। इसमें खतियान की जरूरत नहीं है। चूंकि सभी स्थानीय माने जा सकते हैं और प्रखंड में उपलब्ध जातियों (एसटी, एससी,ओबीसी आदि) के आबादी के अनुपात से प्रखंड के कोटा को भरा जाए। यह तीन महीनों के भीतर लागू हो सकता है।
आदिवासी सेंगेल अभियान सभी राजनीतिक दलों, संगठनों,बुद्धिजीवियों, नवयुवकों आदि से अपील करता है इसको लागू करने में सहयोग करें। क्योंकि यह स्थानीयता, आरक्षण और नियोजन नीतियों को समायोजित करते हुए एक समाधानमूलक प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। अन्यथा सोरेन परिवारअपनी राजनीतिक स्वार्थों की जिद में लूट, झूठ और भ्रष्टाचारी सरकार को बनाए रखने की हर संविधान विरोधी कोशिश जारी रखेगा। भोले भाले नासमझ आदिवासी- मूलवासियों को दिग्भ्रमित करता रहेगा।
सेंगेल का “मरांग बुरू बचाओ भारत यात्रा” जारी है। 17 जनवरी को जमशेदपुर से प्रारंभ यह यात्रा कल गोड्डा ज़िला होते हुए आज 20 वें दिन धनबाद जिला पहुंचा है। कल चाईबासा पहुंचेगा। यात्रा का उद्देश्य जन जागरण है।
मरांग बुरू ( पारसनाथ पहाड़) को आदिवासियों को सौंपने और 2023 में हर हाल में आदिवासियों के प्रकृति पूजा धर्म- सरना धर्म कोड को लागू करने के लिए सेंगेल 11 फरवरी से अनिश्चितकालीन रेल रोड चक्का जाम करने को बाध्य है। यह हमारा संविधान सम्मत अधिकार है। कुरमी को एसटी बनाने के पीछे भी सोरेन परिवार का षड़यंत्र है। सोरेन परिवार के कार्यों से झारखंड की जनता को रूबरू करा रहे हैं। सोरेन परिवार के पतन के बगैर आदिवासी- मूलवासी का उत्थान असम्भव है। दिशोम गुरु, ईसाई गुरु और गांव गांव में वंशुनागत जमे हुए अधिकांश माझी हाड़ाम (आदिवासी ग्राम प्रधान) आदिवासी समाज को बर्बाद कर रहे हैं।
इनका विरोध चालू है।
हमारे ईश्वर मरांग बुरु, हमारा सरना धर्म और हमारी धार्मिक और प्राकृतिक आस्था और विश्वास पर किसी के द्वारा चोट करना, अब हम आदिवासी और बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। मरांग बुरु हमारे लिए राम मंदिर से कमतर नहीं है। राम मंदिर आंदोलन की तरह मरांग बुरु आंदोलन भी आक्रामक हो सकता है। मरांग बुरु पर पहला अधिकार हम आदिवासियों का है, जैनों का नहीं है।