तोपचांची झील के विस्थापितों को सौ साल बाद भी नहीं मिला न्याय

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तोपचांची झील के विस्थापितों को सौ साल बाद भी नहीं मिला न्याय

डीजे न्यूज, तोपचांची, धनबाद : झारखंड माइनर वॉटर डेवलपमेंट अथॉरिटी (झामाडा) का उद्देश्य प्रदेश के लोगों को पेयजल उपलब्ध कराना है। झरिया वाटर बोर्ड का गठन 15 नवंबर 1924 को हुआ था, जबकि जमीन अधिग्रहण का कार्य 1914 से ही शुरू किया गया था। इस परियोजना के लिए बड़े भू-भाग की आवश्यकता थी, जिसके चलते तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने दर्जनों गांवों के रैयतों और किसानों को विस्थापित किया।

आज तक इन रैयतों और किसानों को न तो मुआवजा मिला और न ही नियोजन। सरकारें बदलती रहीं लेकिन इनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। तोपचांची वाटर बोर्ड झील, जो पर्यटकों के लिए एक अद्भुत स्थल है, पूरे प्रदेश के पर्यटकों का मनोरंजन करता है। राज्य सरकार से अपेक्षा है कि इस झील को विकसित करे ताकि क्षेत्र के युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा सके।

स्थानीय नेता सदानंद महतो ने कहा कि झामाडा आज अनुबंध पर नियोजन दे रहा है, लेकिन पिछले 3 सालों से अनुकंपा के आधार पर मृतक कर्मियों के परिजनों को नियोजन नहीं दिया गया है। उन्होंने सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए नई सरकार से अपील की कि अनुकंपा और विस्थापित रैयतों को नियोजन प्रदान किया जाए।

महतो ने कहा कि झील का विकास होने से क्षेत्र के युवाओं को स्वरोजगार के अवसर मिलेंगे और पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।

इस खबर से स्पष्ट होता है कि झामाडा के विस्थापित रैयतों और किसानों की दशा सुधारने के लिए सरकार को तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि उन्हें न्याय मिल सके और उनका भविष्य सुरक्षित हो सके।

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