दुष्कर्म में जमादार ने सवा चार साल जेल में काटा,फिर हुआ निर्दोष साबित
डीजे न्यूज़,गिरिडीह : दुष्कर्म के आरोप में सवा चार साल से अधिक समय जेल की सजा काटने के बाद आरोपित को निर्दोष करार देते हुए अदालत ने रिहा कर है।जिला जज द्वितीय आंनद प्रकाश की अदालत ने सोमवार को आरोपित रामानन्द झा को पर्याप्त साक्ष्य के आभाव में रिहा किया।आरोपित रामानन्द झा झारखंड पुलिस में एएसआई(जमादार)था।आरोप लगने के बाद जेल जाना पड़ा। लंबी न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद न्यायालय ने रिहाई का आदेश दिया। जेल अवधि में ही आरोपित अपने नौकरी से रिटायर्ड भी कर गया।इस मामले में पीड़िता ने अपनी गवाही न्यायालय में नही दी। न्यायालय से कई बार नोटिस और वारंट जारी किए जाने के बाद भी जब पीड़िता नहीं आई तो पुलिस महानिदेशक तक के पास न्यायालय ने उसके खिलाफ वारंट भेजा था।अभियोजन को कई अवसर मिलने के बावजूद वह पीड़िता की गवाही नही करा पाई।लंबे समय तक जेल में समय बिताने के बाद रामानन्द झा आरोप से तो बरी हो गए हैं। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि यदि मामले में सच्चाई नही थी तो अपने ही अधिकारी के खिलाफ गिरिडीह पुलिस क्यो आक्रमक थी।तत्कालीन एसपी के आदेश पर महिला थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।कार्यवाही भी हुई, पर अंजाम शून्य। पीड़िता ने शुरू में खूब न्यायालय के चक्कर लगाए थे। अपनी पीड़ा और दर्द सब जगह बया की थी। प्राथमिकी के बाद न्यायालय में 164 के बयान में दुष्कर्म की बात कही थी।इतना ही नही विक्टिम कंपनसेशन स्किम के तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकार से पीड़िता को तीन लाख रुपए मुआवजा दिया गया था।विक्टिम कंपनसेशन स्किम उन पीड़िता के लिए है जिनके साथ जधन्य अपराध हुआ हो।उसके दर्द को कम करने और मुकदमे को मजबूती से लड़ने के लिए पीड़ित को हौसला अफजाई के लिए यह मुआवजा दिया जाता है। पीड़िता ने यह राशि लेने के बावजूद न्यायालय में अपनी गवाही नही दी।इस बारे में अधिवक्ता का कहना था कि उसका मुवक्किल निर्दोष था।दुष्कर्म की बात बिलकुल गलत आरोप था।पीड़िता की मंशा सिर्फ पैसे एठने की थी।उसके मुवक्किल को ब्लैकमेल कर पैसा मांगा गया था।नही देने पर एक झूठी कहानी रच कर केस किया गया।था।उसके बेकिस्मती समय जेल में बिता।जो वापस नहीं मिल सकता है।
–सुप्रीम कोर्ट में खारिज हुई थी अग्रिम जमानत
-प्राथमिकी दर्ज होने के बाद आरोपित जमादार ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दिया था।जिला न्यायालय से जमानत खारिज होने के बाद हाई कोर्ट में भी जमानत नही मिली थी।आरोपित ने अग्रिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था।वहां भी उसे नाकामी ही मिली।सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत की आवेदन को खारिज कर दिया था।वही हाई कोर्ट ने लगातार इस मामले में स्टेट्स रिपोर्ट की मांग गिरिडीह पुलिस से की थी।आरोपित जमादार ने 17 जनवरी2018 को सीजेएम न्यायालय में सरेंडर कर दिया था।तब से वह जेल में था।उसकी नियमित जमामत भी हाई कोर्ट तक से खारिज किया गया था।आरोप पत्र दाखिल होने के बाद न्यायालय में ट्रायल शुरू हुआ।कुल छह लोगो ने गवाही दी थी।इनमे तत्कालीन देवरी थाना के एएसआई योगेंद्र मंडल और सिमोन सोय थे।जिन्होंने बताया था कि थाना परिसर और आवास में किसी महिला को नही देखा था।नही दुष्कर्म के बारे में सुना।वही पीड़िता की माँ ने कहा था कि उसकी बेटी ने बताया था कि जमादार थाना में बैठा कर रखा।रात में दुष्कर्म किया था।साथ ही अनुसंधानकर्ता और डॉक्टर की भी गवाही हुई।जो दुष्कर्म के आरोप को साबित करने के नाकाफी थे।विदित हो कि देवरी की विवाहिता ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी।कहि थी कि उसके पति दहेज के लिए उसे छोड़ दिया है।अपनी शिकायत दर्ज कराने 23 अगस्त 2016 को थाना गई थी।पति को थाना बुलाने की बात कह कर जमादार ने महिला को रोके रखा और रात में थाना परिसर स्थित आवास ले जाकर दुष्कर्म किया था।देवरी में दुष्कर्म की शिकायत दर्ज नही होने पर एसपी से फरियाद की थी।एसपी के आदेश पर महिला थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।